बदलाव

कितना बदलूँ खुद को मैंकि वैसा हो जाऊँजैसा मैं सच में हूँ,ये शिकायत के कपड़ेअब पुराने हो गये हैंये आँसुओं की दीवारें खोखली हो चुकी हैंबहुत दिन हो गएहोठों को भी हंसे हुये,कुछ तो बदलना होगा अबकब तक घुटेगा कोईअपनी उसी विचारधारा मेंजहाँ न खुशी है न सफलता? एक नयी पोशाक सिलवाई है मैने कलContinue reading “बदलाव”

नयी पत्तियाँ

मेरी मेज पर रखे शीशे के गमले मेंजो कि आधा भरा है पानी सेखड़ा है एक छोटा सा पौधाघिरा कुछ रंगीन गोलियों सेमेरी बेरंग सी ज़िन्दगी मेंबस ये ही रंग बाकी हैं;बाकी हैं रंग जो भीवो वैसे ही हैंजो मैंने गोंचे थे बचपन मेंआर्ट के एग्ज़ाम मेंमुझे तब ही की तरहआज भी मार्क्स कम हीContinue reading “नयी पत्तियाँ”

पुराने नोट्स

सफल लोगों का कहना हैपीछे मत देखोआज में जियोआज में ही तुम्हारा कल है;पर, प्रेमी जीव क्या करेप्रेम बंध नहीं पाता सीमाओं मेंभूत,वर्तमान और भविष्य की,न ही समझ पाता है जीवन के सत्य उस आधुनिक भाषा मेंजो उसने कभी पढ़ी ही नहीं। स्वयं को समझने के प्रयास मेंप्रेमी जीव ने उठाये कुछ पुराने नोट्स,जिनमेंसधे हुयेContinue reading “पुराने नोट्स”

कल्पना

जब कागज़ पर बनी लंबी घासों के पीछेआपको गाँव न दिखायी दे,जब हर अलंकार का अर्थ ढूँढ़ा जाएशब्दकोषो में,जब प्रेम सिमट जाये आराम सेअर्थ-काम के कोनों में,समझ लीजियेगा डरने लगे हैंआप अपनी ही कल्पना से; अभिव्यक्ति स्वतंत्र होती हैसघन जीवन-अरण्य में,वाटिकाओं में तो बसछद्म-श्रृंगार पुष्प खिलाये जाते हैं! – प्रशान्त

बस इतना

कोई हाथ पकड़ लेता मेरा भीबस इतना कह देता मुझसे-इतना घबराना किस बात काजब मैं हर पल तुम्हारे साथ हूँवक़्त बदलेगा तुम्हारा भीसब अच्छा हो जायेगा,सुना नहीं तुमने क्याउस पुराने भुतहे घर मेंकल ही नया परिवार आया है!काश! कोई हाथ-देखा,अनदेखाबस इतना कह देता मुझसे…. -प्रशान्त

दर्द

दर्द जब भर आता है गले तकतो साँस भी नहीं आती,कितनी सज़ा ज़रूरी हैएक ग़लती के लियेजो जानबूझ कर नहीं की गयी,कितनी सांत्वना ज़रूरी हैउस प्रयास के लियेजो सफल न हुआ,कितना सार्थक है वो प्रेमभौतिक रूप सेजो सफल न हुआ। कुछ सालों पहलेएक किताबी मनुष्य ने ग़लती की थी,उसकी सज़ा आज भी जारी हैसांत्वना, सफलता,Continue reading “दर्द”

रंग डालो मेरे राम

फाल्गुन में नयी बयार चलीकलियाँ नये रंगों में खिली,हृदय आज सब उल्लसित हैंकुछ ऐसे हैं जो विचलित हैं,मैं कब से बेरंग बैठा हूँमुझ पर भी रंग डालो राम। पैदा हुआ था जब मैंकोई मेरा रंग न था,भाव-प्रणय सब देखा मैंने जीवन-समर सब देखा मैंने,मैं अब भी बेरंग बैठा हूँमुझ पर भी रंग डालो राम। सफलContinue reading “रंग डालो मेरे राम”

मछली

आज मुझेआइंस्टाइन की वो मछली मिल गयीजिसे उन्होंने किया था मनापेड़ पर चढ़ने से;वो नहीं चढ़ी थी पेड़ पर उस दिनवो आज भी पड़ी है वहीँउसे न पानी मिलान कोई तैरने का मूल्यांकन करने वाला। आज सुबह अखबार में ख़बर आयी हैपरीक्षा में फेल होने पर छात्र ने की आत्महत्या, औरमछली भी मर गयी उसकेContinue reading “मछली”