रुसवा

रुसवा हो जो फाड़ी थी मेरी चिट्ठियाँ,उम्मीद है उंगलियाँ तुम्हारी न दुखी होंगीदिल का मेरे हाल जो भी रहा हो,उम्मीद है तुम्हारी आँखें न भीगी होंगी वो जो खून टपका था उन टुकड़ों पर,सब्र रखो तुम्हारा ना थाऔर एक हमारा दिल है, जिसमे आंसुओं की कोई कमी ना थी फासलों का ज़िक्र करना नहीं मुनासिब,तुमसे दूर मैं कभीContinue reading “रुसवा”

सूखा हुआ फूल

पुरानी धूल सनी किताब में सूखा हुआ फूल पाया है  जो आज भी महकता है बगीचे में खिले फूल जैसा महक उन यादों की जो आज तक जिन्दा है दुबकी हुई दिल के किसी कोने में कमज़ोर हो वक़्त के थपेड़ों से फिर खुल गए आज  कई पुराने किस्से किसी ने जैसे रख दी हो Continue reading “सूखा हुआ फूल”

क्या हो गया

फ़िक्र इतनी है क्यों आज अंजाम कीवक़्त आग़ाज़ के कुछ तो सोचा ना थाथा वफ़ा का जो रंग सुर्ख लाल सापल में सूखा,भला ऐसा क्या हो गया वो जगह,वो समाँ और मैं भी वहीहै ज़माना भी सब,पर मेरा आशिक नहींकुफ्र मुझसे ना जाने है क्या हो गयामेरा मालिक जो मुझसे जुदा हो गया मुफलिसी मेंContinue reading “क्या हो गया”

अनलिखा ख़त

कल आधी रात पढ़ा वो ख़तजो तुमने कभी लिखा ही नहींआंसुओं की स्याही भलाक्या कोई रंग लाती है! फिर भीआज सुबह से मन भारी हैलगता हैज़माने भर की धुंध मेरे कमरे में जमा हैतुम नाराज़ थींतो बता दिया होता यूं हीइतने कड़े ख़त कीआखिर क्या ज़रूरत थी! रोज़मर्रा की तरहजाते हुए मंजिल कोअपने जूते हीContinue reading “अनलिखा ख़त”

इलाहाबाद

तेरे पास था तो इतनी कद्र ना थी आज जाना तू सिर्फ शहर नहीं कुछ और  इमारतों पर चढ़ ये मुल्क  शायद ऊंचा हो जाए पर इलाहाबाद! तेरी रूह सिरमौर है कुछ बात तो है तुझमें कि कैफे की महंगी कॉफी तेरी चाय से हमेशा हार जाती है कि तेरे यहाँ  सर्दी में इश्क अमरुदContinue reading “इलाहाबाद”

घाव अभी ताज़ा है

कल ही की तो बात है मैं गिरा था अपने घर के आँगन में बस हलकी सी खरोंच ने माँ को रुला दिया था उस दिन दिल्ली में घायलों को टी.वी. पर देखा तो सोचा क्या बीती होगी इनकी माओं पर मेरी चोट तो हल्दी से ठीक हो गई पर यहाँ घाव अभी ताज़ा हैContinue reading “घाव अभी ताज़ा है”

मैं जिंदा हूँ

सोते हुए बीच रात आज आँख खुल गई माथे पर था पसीना सांसें भी कुछ तेज़ थीं  भागती धड़कन से एहसास हुआ मैं जिंदा हूँ एक सपने में अभी-अभी देखी बीते सालों की पहाड़ ज़िन्दगी जिस पर चलते,चढ़ते  थक गया था मैं रुक गया था मैं पैर फिसला, हवा में कुछ गोते खाए नीचे गिरकरContinue reading “मैं जिंदा हूँ”

उलझन

इमारतें, कुर्सियां जिंदा हो जातीं हैं जब उन पर इंसान बैठते हैं दिमाग सन्नाटे से भीड़ में आता है जब कहीं विचार उबलते हैं  इश्क वही सच्चा है  जो आग को बुझने ना दे कर मायूस न कभी  और मंज़िल से पहले रुकने ना दे कमरों में कब तक चलेगी लफ्फाज़ी घूमते रहेंगे कब तकContinue reading “उलझन”

कुछ पल

कुछ पल के बस ये दिन हैं कुछ दिन की बस ये बात है फिर समाँ बदल जाएगा बेफिक्री के इस जहाँ में फ़िक्र का बादल आएगा कुछ पल के बस ये दिन है  वो शरारतें याद आएँगी बिन बात हँसना याद आएगा वो डाटें याद आएँगी यारों संग बीता वक़्त याद आएगा मस्ती की सुबहContinue reading “कुछ पल”

हे प्रेम

Valentine’s Day (प्रेम दिवस) पर “प्रेम” को मेरी श्रद्धांजलि!!! हे प्रेम!! कहाँ तुम छुप गए क्यों दुबके हो तुम दिखावे के छोटे वस्त्रो में क्या इतनी आती है तुम्हे शर्म मत शरमाओ कुछ यूं फैलो  कि समा लो स्वयं में उन “दो” चकवा चकवी को जिनकी आत्माएं  शरीर के बंधन तोड़  एक हो चुकी हैंContinue reading “हे प्रेम”