मेरी सोच का महताब वैसा ना हैजैसा देखा होगा तुमने फलक परये ना निकलता है रात मेंना डूबता है दिन मेंगुरनूर है मेरे दिल में, जैसे कोईना भूली हुयी याद वो यादजो कभी नरम फूल थीऔर रखा था जिसेमैनें अपनी ज़िन्दगी की किताब मेंसहेज करमाँ की दुआओं की तरह पर किताब के सीले हुए पन्नेContinue reading “महताब”
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मन का जहाज
गिराया वक़्त ने बहुत लेकिनबेशर्म निकला मैं भी बहुतइतना किअब कोई चोट दर्द नहीं देतीअब कोई गाली खीझ नहीं देतीअब कोई हार ग़म नहीं देतीअब कोई बात कोई रंग नहीं देतीफिर भी बस इसी सोच मेंजीता रहता हूँ मैंतलाश में उस चाँद कीहै इसी दुनिया में जोजहाँ जा सकता है सिर्फमन का जहाज। -अशांत
तिनका
एक तिनका हूँ मैं उस बूढ़े पेड़ काझूमता खड़ा है जो उस मोड़ परसुलभित,प्रसन्न था मैं भी कभीढोते हुए उसकी पत्तियाँपर आज बात कुछ और हैगिर गया हूँ मैं,सूखी सारी पत्तियांइस धुप में जला, झुलसाहो कांतिहीनलू के थपेड़ों के साथपहुंचा मैं एक आँगन मेंकि कुछ शीत मिल जाएआशावान था मैंपर था शायद भूल गयाटूटे हुए को सहारा मिलताContinue reading “तिनका”
तलाश अभी जारी है….
आईना देखता हूँ रोज़तलाशने चेहरा अपनापर हर रोज़ ही,सामनेकोई और शख्सखड़ा नज़र आता है निकलता हूँ जब घर सेढूँढने इंसान कोई जैसे अपनाअफ़सोस, हर रोज़ हीहर शख्समुझसे जुदा नज़र आता है शोहरत,रसूख तय करते हैंआज कीमत जब इंसान कीहै रश्क,जो समझना था बहुत पहलेवही राज़मुझे आज समझ आता है -अशांत
प्रेम सुन्दर था
प्रेम सुन्दर था बंधा मन की सीमाओं में, धृष्टता कर लाँघा उसको पहुंचा शरीर के पास जहां देकर क्षणिक सुख उसको नोचा खसोटा गया, फिर फेंक दिया बहुत दूर मिटा दिए सारे तथ्य, बंद है प्रेम आज अपने ह्रदय के कारागार में शून्य सा भावनाहीन,लज्जित,बिखरा हुआ डरा हुआ बलात्कारी ह्रदय से झांकता हुआ समय कीContinue reading “प्रेम सुन्दर था”
हमारी बिटिया तो चली गयी
‘बिटिया’ शब्द का प्रयोग इसलिए किया है क्योंकि जो दिल्ली में आहत हुई है वो एक “बिटिया” थी ना की कोई ‘बेटी’ या ‘daughter’। एक साधारण बिटिया जो कि अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी।जो कि एक सम्मानित जीवन जीना चाहती थी।उसे शायद नारीवाद से कोई मतलब ना था।वो बस अपने सपने पूरे करनाContinue reading “हमारी बिटिया तो चली गयी”
फिर भी माँ मुझसे बात करती है
मैं कितना बुरा हूँफिर भी माँ मुझसे बात करती है, जिनके कारण लड़ा था मैं तुमसेअपना असली रंग दिखा गएपर तुम आज भी रंगी हुई होममता के अमिट रंग में,आज भी जब सब दावतों मेंमज़े लेते हैं तुम्हे मेरीएक रोटी कम खानेकी बहुत चिंता है,रात में मेरे कमरे की बत्तीजब देर तक जलती हैऔर मैं किताब खोल करजबContinue reading “फिर भी माँ मुझसे बात करती है”
कौन हो तुम?कहाँ हो तुम?
कल रात ही तो सपने मेंकॉफ़ी पी थी तुमने मेरे साथपर मेरी इस ज़िन्दगी में,इस सुबह मेंकौन हो तुम?कहाँ हो तुम? मेरे उस पुराने से कप पररखे थे तुमने अपने गोरे हाँथतुम्हारी प्यारी पतली उंगलियाँजिनके निशाँ अभी तक है उस परकाँप रहीं थी रात की उस ठण्ड मेंसेंक रही थी जिन्हें तुम अपनी गर्म सांस परतुम्हारेContinue reading “कौन हो तुम?कहाँ हो तुम?”
और मैं नहीं हूँ
वो दीवार तुम्हारे घर कीआज भी उसी रंग की हैवो सब जो जैसा थाआज भी वैसा ही हैकोई फर्क न पड़ा हैज़िन्दगी में सिवा इसकेतुम बदले हुए होऔर मैं नहीं हूँ ख़ता भी मेरी ही थीफर्क पहचान ना सकादौलत के असर को मैंअच्छे से जान ना सकाकुछ ज्यादा ही फक्रकर बैठा अपनी सच्चाई परसतही ख़ुशीContinue reading “और मैं नहीं हूँ”
वो चाँद
वो जो चाँद बिखरा है मेरे बिस्तर पर क्या वही है जो चमकता है रात भर आकाश में या अमावस को ले छुट्टी छोटी सी आया है मिलने मुझसे मेरे घर पर वो जो चाँद सिमटा है मेरे बिस्तर पर क्या वही है जो बदलता है पहला सा हो जाने को या है वो देवता Continue reading “वो चाँद”