जब कभी भी जाना तो मार देना मेरे प्रेम को भी, मैं नहीं चाहता अब तक था जो मेरे अन्दर सबसे सुन्दर रूप वो बने कभी भी कुरूप। कब तक करूंगा धारण मैं सभ्यता की भारी पोशाक, मैं नहीं चाहता वीभत्स हो कभी भी मेरी अभिव्यक्ति रचे हैं मैंने जिस से प्रेम-गीत अनूप। पर,Continue reading “जब कभी भी जाना”
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मोहब्बत चीज़ पुरानी थी
मोहब्बत चीज़ पुरानी थीअब उसका ना कोई मोलनये दौर के इश्क़ काब्राण्ड कुछ अलहदा है,ठीक चवन्नी वाली टाफी की तरहजो ‘नये रैपर’ मेंअब दस रुपये में मिलती है,पहले मिलती थीजो दूर बस एक दुकान परआज गली-गली में बिकती हैपाना है जिसको आसानपर स्वाद करना मुश्किल हैअब पैसों के बिना कहाँसच्ची खुशियाँ मिलती हैं। -प्रशान्त Continue reading “मोहब्बत चीज़ पुरानी थी”
ग़रीबी
ग़रीबी शरीर ही नहीं दिमाग भी खा जाती है जैसे कोई बिना जीभ का आदमखोर राक्षस जो स्वाद नहीं लेता बस निगल जाता है यूं ही। निगले जाते हैं सपने भी हर रोज़ करोड़ों के सिर्फ़ इस कारण कि वो ग़रीब थे। -प्रशान्त
तू मेरे पास जब भी आ जाए
वो जो अधूरा सादूर खड़ा है अपना जीवनहो जाएगा वो तो पूरामेरे पास अगर तुम आ जाओ, किसको है मुकम्मल जहाँ की उम्मीदकिसे चाहिए सब कुछ साबूतबस थोड़ी सी ख्वाहिश हैहम दोनों मुकम्मल हो जाएँ, वो छाप तुम्हारी उंगली कीथी तो मेरे हाथों परअब छपी हुयी है दिल परपकड़ो हमेशा तुम हाथ जो मेराहमारा सपना पूरा हो जाए, नाContinue reading “तू मेरे पास जब भी आ जाए”
वो डोर कहाँ टूटी ही थी
वो डोर कहाँ टूटी ही थीजिसको तुम टूटा जान रही होवो बात कहाँ भूली ही थीजिसको तुम भूला मान रही होऔर कहाँ बदला था कहीं कुछजिसको तुम बदला मान रही होसाल दो साल होते ही क्या हैंसोचो तो बहुत सोचो तो ना कुछकुछ याद करो उन परिंदों कोजो उड़े थे घर से संगम की तरफऔर बिछड़े थे बीचContinue reading “वो डोर कहाँ टूटी ही थी”
दोबारा इस दुनिया में आने की ज़रूरत क्या है
बड़ी भीड़ है बाज़ार में जहां कभी मेरी माँ जाती थीआज मिलता है वहीं मुझे सुकून, वजह क्या है इश्क करता है हर कोई अपने तरीके सेफिर अंजाम एक सा होने का सबब क्या है जो सरेआम होना ही है चोरी से लिखा ख़तइश्क छुपाने की आखिर ज़रूरत क्या है और अगर मिल जाए ख़ुशी एकContinue reading “दोबारा इस दुनिया में आने की ज़रूरत क्या है”
मैं वो आवारा हूँ
उकता गयी है अब रात भीमेरे देर तक जागने सेअब चली जाती है जल्दी हीछोड़ मुझे सहर के साथकोसता है मुझ ही कोसोता हुआ आफताबकि मेरी बेचैनीउसकी मोहब्बत में ख़लल देती हैनहीं समझता वो मेरी मजबूरीहै नहीं मेरे पास कहकशां उसकी तरहनहीं आज़ाद मैं चमकताअब्र में उसकी तरहमैं वो आवारा हूँजो ख़ुद में ही कैदContinue reading “मैं वो आवारा हूँ”
Oh FLOOD!
Allahabad Flood, 2013 (Link to the Album) Oh Flood! I knew you only as a metaphor When I drowned in my miseries In all the emotive vain But here you are- real and stark In all your force Making me realise my minuteness Confining me against my will Showing me the boundaries Which were always there,Continue reading “Oh FLOOD!”
पुराना पार्क
जब कभी मन ऊबेतो उस पुराने पार्क में आइयेजिसमें उस पुरानी दोपहर काराज़ आज भी ताज़ा हैबहुतों ने छुआ होगा उस बड़े पत्थर कोपर आपके हाथों का एहसासआज भी ताज़ा हैप्यार कब बासी होता है!उनके साथ नहीं तो अकेले ही सहीफिर छुप कर बैठिये, उनका अंदाज़-ए-इकरारआज भी ताज़ा हैचमकती हँसी के लिबास के पीछेअन्दर फीके होContinue reading “पुराना पार्क”
पता नहीं जब झगड़ा क्या था
कोई जन्नत का तालिब है, कोई ग़म से परेशान हैगर्ज़ सजदा करवाती है ,यूं ही इबादत कौन करता है यूं ही सच्चा था सब अगर, फिर सपना क्यों थाअगर इश्क भी था तेरा-मेरा, तो अपना क्या था जो उड़ना ही था हमको, हालात की बेदर्द आँधी मेंचलते रहना था ही बेहतर, उस मोड़ पर आखिर रुकना क्या थाContinue reading “पता नहीं जब झगड़ा क्या था”