कौन हूँ मैं?

पन्नों पे बिखरी स्याही देख के एक दिनख़्याल कहीं से कुछ आया ऐसाक्या ये लिखावट मेरी ही है?क्या मैंने ही लिखी थी ये कहानी?फिर कुछ डर ऐसा आया दिल मेंजो अनजाना हो बैठा मैं खुद सेपूछ बैठा फिर कुछ खुद ही खुद सेआख़िर, कौन हूँ मैं? किताबों में रंगी हुयी लाइनेंपीले पड़ गये पुराने नोट्सडायरीContinue reading “कौन हूँ मैं?”

मन

बाहर का सब सचबन्द आँखों से अंदर ही दिखाई देता हैसब लिख जाता है सरकारी रजिस्टर परअधकचरी भाषा में-न कोई विन्यासन कोई व्याकरण;आज कोशिश की उसी को पढ़ने कीकोई पक्षपात न हो इसलियेनज़र का चश्मा भी उतार दिया पर कुछ मिनटों में ऊब गया दिलकभी कुछ समझ न आयासमझ आया तो खुद को न भायाऔरContinue reading “मन”

सारा प्यार हमारा

सारा प्यार हमारा है आज तुम्हारे आँगन मेंहर एक चाँद हमारा है आज तुम्हारे आँगन में बोल रही हैं चुप होठों सेआँखें तुम्हारी भोलीतन्हा चलती जो साँसेंवो संग तुम्हारे हो लींसारा प्यार हमारा…… साथ नहीं तो ग़म क्याहै दिल में तुम्हारे एक घरकाश कहीं रूक जाताये प्यार का सुंदर सागरसारा प्यार हमारा….. हँसते हो क्याContinue reading “सारा प्यार हमारा”

पूर्ण विराम

बहुत पहले लिखते समय पहला वाक्यमाँ ने सिखाया था पूर्ण विरामजिसको लगाने के बाद हीशुरू होता था नया वाक्य;निरन्तर चलते हुये जीवन मेंकुछ अर्ध-विरामों के अलावासब बस चलता ही रहा, एक औपचारिकता की तरह-भावहीन, अर्थहीन, अस्तित्वहीन। कल जीवन के सबसे अच्छे लेखक नेलगा दिया पूर्ण विराम-एक सुदृढ़ सशक्त विराम,सब हमेशा के लिये रुक गयाऔर हाँ,Continue reading “पूर्ण विराम”

आँख मिचौली

ये कैसी आँख-मिचौली हैतुम जिसमें हमेशा छुप जाते होमैं तुम्हें कभी ढूँढ़ नहीं पाता हूँ। किन शब्दों की बात कहूँजो दिल में रहे या पहुँचे तुम तकमेरा लिखा अब तुम कहाँ पढ़ पाते हो। नाम किसी का लेते हो तुम पर जब वक़्त मोहब्बत का आता हैतुम मेरे जैसे बन जाते हो। वो दोपहर तुमकोContinue reading “आँख मिचौली”

उत्कंठा

वो अंतरतम का दीपक स्थलकब ज्योतिमान होगा तुम से?कब हटेंगे तम के आवरणकब जीव मिल सकेगा तुम से? सरस जीव की नीरस धृति परप्रेम-सुधा विष जैसे आहत करताकराहता अंतर्मन आत्म-क्षुधा बर्बरकब जीव मिल सकेगा तुम से? हर स्पर्श मन का मलिन हुआभोग तप सा बन न सकाअगर सिमट कर छिप जाऊँकब जीव मिल सकेगा तुमसे?Continue reading “उत्कंठा”

मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ

मैं तुमसे मिलना चाहता हूँनहीं चुप चांदनी रात में,मैं तुमसे मिलना चाहता हूँबड़े शहर की बोलती रात में,मैं तुम्हें देखना चाहता हूँसड़क की दूधिया ट्यूबलाइट में; क्योंकिचाँदनी कवियों ने पुरानी कर दीक्यों छुपने दूँ मैं तुम्हारी सरल सुंदरताऔर खुद तुमकोकिसी कवि की कल्पना में? तुम में पता नहीं क्या दिखायी देता हैशायद सब कुछ- हँसी,Continue reading “मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ”

अकेलापन

एक खाली मेजतीन खाली कुर्सियाँएक अकेला अकेलापन-दो कुर्सियाँ ही खाली थींपिछली बार कहा था तुमने नहीं होगाकभी कोई अकेला,पर देखो न ऐसा क्यों हैपिछली बारजिसने उलझाये थे तुम्हारे बालआज उसने बस टिशू पेपर उड़ायेसच कहें? इन उड़ते काग़ज़ों मेंउड़ता रोमांस भी था। पिछली बार बड़ी मुश्किल सेछः पीले ग़ुलाबों के बीचएक लाल ग़ुलाब वालागुलदस्ता बनवायाContinue reading “अकेलापन”

छुटपन

छुटपन में सुंदर लगने वाली हर चीज़खो देती है पढ़-लिख करअपनी सुंदरता और अपने आप को। छत की सुलाईचोट की रुलाईनानी की बातटूटा हुआ दाँतबेफ़िक्री का हाथबिन बिजली की रातबचपन की रेलसाईकिल के खेल न हारने का डरन जीतने का अंतर;ये सब तो खो गया पढ़-लिख करना जाने क्या मिला बड़े हो कर! बचपन कीContinue reading “छुटपन”