बचपन मेंस्कूल से लौटते हुयेएक छोटा सा था पार्क दीदी मुझे वहाँ झुलाया करती थी। एक अकेला बचपनन थी जिसमें कुछ अनबनबैग मेरा लेकर मुझसेदीदी मुझे झुलाया करती थी। ऐसा लगता था मैंउड़ जाऊँगा सबसे दूरजब हँसते-हँसते ज़ोर लगाकरदीदी मुझे झुलाया करती थी। कुछ लिख देता था मैंजो समझ न पाती वोवो सब बुलवाती थीContinue reading “दीदी”
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इंतज़ार
मोहब्बत जवाँ होती है इंतज़ार सेतुम्हारा बहुत दिनों से इंतज़ार है जो कुछ किया याद तुम्हारे प्यार मेंपढ़ लो मेरी आंखें तुम्हारा अख़बार हैं फ़िसल पड़ी थी धड़कन जिस अदा परतुम्हारी उसी अदा पर जान निसार है जब रहते हो तुम दूर हम लिखते हैंमेरी रूह के करीब हमेशा मेरा यार है जब कभी झपकतीContinue reading “इंतज़ार”
तुम साथ होते हो मेरे
कब साथ होते हैं दो लोग?जब होते हैं हाथों में हाथया होती है बातों में बात? तुम साथ होते हो मेरेजब सोच लेती हूँ मैं उस पल कोजब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था,तुम्हारी पहली आवाज़ मुझे आज भी छू लेती है! तुम साथ होते हो मेरेजब तुम्हारा नाम आता है ज़ुबाँ परजब तुम चमकतेContinue reading “तुम साथ होते हो मेरे”
Why Mia left Seb?
La La Land was not any different from the mundane land and times we live in! The cliched theme of love lilted with melodious music and weaved with lyrical dialogues bestowed a novelty to the movie. However, one question haunted me throughout. Why is it that from Allahabad to Venice it is generally the male loverContinue reading “Why Mia left Seb?”
काश!
काश! सुलझ जाती कुछ उलझनें;उंगलियों में घूमता हुआ वो धागातुमने उलझाने के लिये तो न लपेटा होगा,गोरी उंगलियों पर लिपटीकाले धागे की कई परतेंअंगूठी है उस रिश्ते कीजिसे न किसी ने बनायान ही किसी ने पहनाया। काश! समझ आ जाती कुछ पुरानी बातें;तुमने उस दिन जो कुछ कहा थाफ़ोन की खरखराहट ने सुनने न दियाContinue reading “काश!”
पुराने नोट्स
सफल लोगों का कहना हैपीछे मत देखोआज में जियोआज में ही तुम्हारा कल है;पर, प्रेमी जीव क्या करेप्रेम बंध नहीं पाता सीमाओं मेंभूत,वर्तमान और भविष्य की,न ही समझ पाता है जीवन के सत्य उस आधुनिक भाषा मेंजो उसने कभी पढ़ी ही नहीं। स्वयं को समझने के प्रयास मेंप्रेमी जीव ने उठाये कुछ पुराने नोट्स,जिनमेंसधे हुयेContinue reading “पुराने नोट्स”
मैं तुम्हे देख रहा हूँ
तुम्हे पता है क्या?तुम्हारी खिड़की से झांकता चाँदमेरा जासूस है। जब सो जाती हो तुमतब वो बताता है मुझकोकिस करवट लेटी हो तुम,मैं भी वैसे बदल लेता हूँ करवटसुनते हैं सच हो जाती हैजो हुयी नहीं अब तकऐसी तकदीरें भी। इसलिये,मैं पास हूँ या नहींजब कभी दिखाई दे चाँदसमझ लेना,मैं तुम्हें देख रहा हूँ! -प्रशान्त
भटकाव
बात कुछ साल पहले की हैमैं भी निकला था घर सेमंज़िल की तरफ़पर वहाँ कभी पहुँचा नहीं,ढूँढ़ रहा है मुझे कोई आज वहाँकौन है वो?पता नहीं!सुना है,आत्मायें भूलती नहींभटक जाती हैं। मैं चल रहा हूँया भटक रहा हूँ? -प्रशान्त
मेरी भी नज़र में
मोबाईल की स्क्रीन पर देखते देखतेकुछ यूँ हँसी तुम्हारी आँखेंएक मुस्कुराहट दौड़ सी गयीमेरी भी नज़र में वो सपनों के नगर मेंएक छोटे से कोने मेंयूँ बेफ़िक्र लेटे थे तुमदुनिया ही मिल गयी होतुम्हें मेरी नज़र में क्यों फ़िदा हर अदा इश्क़ क्यों इतना अलहदाकोहरे सी उड़ती तुम्हारी शख़्सियत जैसेजम गयी हो मेरे बदन पेContinue reading “मेरी भी नज़र में”
पहली धुंध
कुछ धुंधला था मेरा सपनाधुंधली थी मेरी सुबहअगर कुछ भी नहींतो, आँखें ज़रूर धुंधली थीं। सुबह सुबह तुम बैठी थीमेरी मेज़ परजैसे कोई अधखुली किताबबुकमार्क से लग रहे थेतुम्हारे चेहरे के तिलउन पन्नों की तरहजिन पर शिकन थीकई बार पढ़े जाने कीएक बार भी समझ न आने की। सुबह सुबह तुम बैठी थीकुछ यूँ मेरेContinue reading “पहली धुंध”