करो माता-पिता की आराधना जीवन जिनका तुम पर समर्पित कर्म-श्रेष्ठ साधक बन तुम करो सार्थक उनकी साधना। शैशव की शैया पर जब हम उलट-पलट इठलाते थे, दौड़ पड़ते थे माँ के हाथ जब-जब हम गिर जाते थे, याद करो वो दिन जब तुमने पहली बोली बोली थी, काला टीका तुम्हें लगा कर माँ खुशी सेContinue reading “माता-पिता की आराधना”
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परिभाषा
मुझे इस जीवन तक ले आयीप्रेम को परिभाषित करने की आकांक्षामोक्ष से भी बड़ी हो गयीप्रेम को परिभाषित करने की आकांक्षा;निरर्थक हो गये सदियों के प्रयत्नतुमसे मिलते ही,ज्ञात हुआ तुम्हें सुनते हीप्रेम नाद-ब्रह्म है-उसे अनुभूत किया जा सकता हैपरिभाषित नहीं। मैने सोचा- तुम कौन हो?कहीं से कोई स्वर गूँजा-मैं कालातीत और अलौकिक प्रेम कीसरल, सहज,Continue reading “परिभाषा”
गोली
गोली से हत्या हो सकती है प्रेम नहीं; प्रेम उत्सर्ग है अहं का प्रेम विलय है तुम में मैं का; प्रेम यात्रा है उस बिंदु की जिसका विस्तार है ये संसार; अंततः, प्रेम है उन्हीं बिंदुओं से मिल कर बनीं समानांतर सरल रेखायें जो बिना एक दूसरे को काटे सदैव साथ चलती हैं! – अशान्त
माँ से शिकायत
मेरी माँओं से शिकायत है वो अपने बेटों को खाना बनाना नहीं सिखातीं वो अपने बेटों को कपड़ा सिलना नहीं सिखातीं; रोटी और कपड़ा जीवन के मूलभूत प्रश्न हैं जिनके उत्तर जीने के लिये पता होना आवश्यक है। उससे अधिक शिकायत है मुझे बेटों से जो इन प्रश्नों के उत्तर नहीं ढूंढ़ते या जान करContinue reading “माँ से शिकायत”
पॉलिटिकल प्रेम
शेखर के मन की बात उस दौर में जब सोचना ज़रूरी है। प्रेम की कोई परिभाषा तो होती नहीं , मन की एक सोच है, वही सोच साझा कर रहा हूँ….. अन्वरसिटी में जो मैं पिट जाऊँ, तुम दनादन्न विडियो लाना, फेसबुक पर डाल डाल, नक्सल अर्बन तुम बन जाना, मैं ग्राउंड वर्क सम्भालूंगी, तुमContinue reading “पॉलिटिकल प्रेम”
हरा स्वेटर
एक उदास सी शाम में देखी तुम्हारी बेफ़िक्र हँसती तस्वीर जैसे किसी ने सर्द पैरों पर डाल दी रजाई, आँखों की आधी दूरी तक फैला काजल कुछ इधर कुछ उधर बिखरे खिचड़ी बाल लोधी गार्डन की ठंडी टूटी बेंच यादों की अंगीठी सी सुलगा जाती है, बुने हुये स्वेटर में छूट जाते हैं कुछ फंदेContinue reading “हरा स्वेटर”
यादों के गद्दे
पिछली बारिश मेंइन पहाड़ों परउग आये हैं घासों के गद्दे,जैसे डायरी मेंउग आती है तुम्हारी यादें,एक समय था-तुम्हारी हँसी में आराम थाठंडे हाथों को जैसे डाल लिया हो जेब में;जिसे तुम गुनगुनाया करती थीएक पुरानी ग़ज़ल सुनी आजतुम एक बस स्टॉप होजहाँ रुक कर मेरी ज़िन्दगीहो जाती है पहले सी। -अशान्त
शहर की बाढ़
हिमालय की आँखों का पानीशहरों में पहुँच करबन जाता है बाढ़;इस पानी में-नहीं तैरती कोई नाँवनहीं पलती कोई मछली,शहरों में आकर हिमालय का पानीजीवन की तरहखारा हो जाता है। – अशान्त
धनक-पुल
क्षितिज के दो छोरों परदो प्रेमी खड़े हैंएक शायद तुम होएक शायद मैं हूँ,इन दो छोरों के बीचधनक ने बनाया है पुल-हम दोनों को पता है न तुम आओगी इस पारन मैं आऊँगा उस पार। एक एक रंग उड़ जायेगा धनक काजैसे उड़ जाता है समय के साथ प्रेमपर रहेगा रंग-कुछ तुम्हारा मुझ परकुछ मेराContinue reading “धनक-पुल”
खोया शहर
इन्सान बदलें तो चलता हैक्यों बदल जाते हैं शहर? बदला हुआ शहर बदल देता हैउन यादों कोजिन्हें उड़ाया था धुँए में हमनेनाचने को उसी आबो हवा मेंजिसमें मैं पैदा हुआऔर मर जाना चाहता हूँ;बड़ा अजीब हाल है अबनयी कहानियों वाले मेरे शहर कीहवा अब बासी हो गयी हैजहाँ नाचते थे हमउन कोनों में उदासी होContinue reading “खोया शहर”