तीन डंठलों वाला पौधा

तुम्हारे दिये पौधे में  बस तीन डंठलें बची हैं,  सब दिखता है  शीशे के गमले के आर-पार  इसलिये उस में नहीं जमा होने दी  कभी कोई गन्दगी; दावा तो नहीं है पर झूठ भी नहीं  दिल ने तुम्हें बिना किसी संशय  हमेशा निश्छल ही चाहा है, बड़ी मेहनत से बदला है रोज़ पानी  तब जाकरContinue reading “तीन डंठलों वाला पौधा”

मासूम

मुख़ालफ़त हमसे करते इश्क़ तो मासूम थासज़ा ज़ुबाँ को देते दिल तो बेचारा मासूम था तुम्हारे तग़ाफ़ुल से मर गया जो जीते जीकह दो तुम ही वो शख़्स नहीं मासूम था भूल के सब दुनियादारी जिसने किया इज़हारलबों को बंद रखने वाला वो शख़्स मासूम था तुम बड़े बन गये सब से कह कर बड़ीContinue reading “मासूम”

जीवन एक विडंबना है

जीवन एक विडम्बना है-सफ़ेद सुन्दर है शांत है बाहरबूढ़ा है,बदसूरत है बाल पर;लाल क्रान्ति है प्रेम हैशरीर से निकले तो हिंसा है;काला सोखता है सब प्रकाशअदालत में काले की ही सत्ता है;जीवन जब तक हाँ में हाँ हैतब तक जीवन हैप्रश्न और विरोध के आते हीजीवन एक विडंबना है। – प्रशान्त 

दुःस्वप्न

मुँह में दाँत नहीं हैंरोटी भाग रही हैछत उड़ रही हैनींव डूब गयी हैबैंक पैसे निगल रहा हैआलस प्रखर हैशब्द खो गये हैंहँसी सो गयी हैरूंदन जग रहा हैस्मृतियाँ आतातायी हैंनींद विरक्त हैमन अनुरक्त हैप्रेम अनाथ हैतुम भी नहीं हो;जीवन एक दुःस्वप्न हैएक तसल्ली है बसजैसा भी हैएक स्वप्न है! – प्रशान्त

The Morning after Love

He sensed her from a distance but never went closeShe snuggled in the assurance of his charm up closeNot a word was spoken or would ever be spokenShe gestured from her eyes-” I want to melt in your arms;”He still waits for her while took not a moment to leaveNo one has yet melted inContinue reading “The Morning after Love”

काला काँच

रात की काली चादर पर नाम तुम्हारा बनाना है तुम्हारे दिल की दुनिया में छोटा सा घर बनाना है प्यार हमेशा था मुश्किल मज़हब एक बहाना है किसे महलों की दुनिया में घर मिट्टी का बनाना है   कोनों पर रहते हैं जो पूँछ उनकी कुछ नहीं बहुत कुर्बान हुये आशिक़ अब ज़ाहिद बनाना है जबContinue reading “काला काँच”

अनजान शहर

उस अनजान शहर कीअनजान गली मेंबीच के एक घर मेंजो न मेरा था न उसकाबंद था सब,सिवाय उस खिड़की केजिस से छन करधीमी होती सूरज की किरणउसके चेहरे पर पड़ करफिर से ज़िंदा हो जाती थी ,उस मुलाकात की तरहजिसे होना बहुत पहले थापर हुयी आज थी। वो दे देती थी भ्रमजीवन काउस भावना कोजोContinue reading “अनजान शहर”

आठ गुना आठ

आठ गुना आठ का कमरा,कोने में रखी मेज़जिस पर फैली हैसालों की मेहनतजिसका न तो कोई रंग हैन कोई आकारऔर न ही कोई अस्तित्व;बेतरतीब सी चिढ़ाती हैउसके अस्तित्व को जोबिस्तर पर पड़ा हुआ पन्नों और सपनों मेंझूल रहा है। आख़िर क्यों है इतना कठिनउस खुले दरवाज़े से भाग जानान जाने किसने रस्सी सेकिस पाये सेउसकेContinue reading “आठ गुना आठ”