वो जो अधूरा सादूर खड़ा है अपना जीवनहो जाएगा वो तो पूरामेरे पास अगर तुम आ जाओ, किसको है मुकम्मल जहाँ की उम्मीदकिसे चाहिए सब कुछ साबूतबस थोड़ी सी ख्वाहिश हैहम दोनों मुकम्मल हो जाएँ, वो छाप तुम्हारी उंगली कीथी तो मेरे हाथों परअब छपी हुयी है दिल परपकड़ो हमेशा तुम हाथ जो मेराहमारा सपना पूरा हो जाए, नाContinue reading “तू मेरे पास जब भी आ जाए”
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Oh FLOOD!
Allahabad Flood, 2013 (Link to the Album) Oh Flood! I knew you only as a metaphor When I drowned in my miseries In all the emotive vain But here you are- real and stark In all your force Making me realise my minuteness Confining me against my will Showing me the boundaries Which were always there,Continue reading “Oh FLOOD!”
पुराना पार्क
जब कभी मन ऊबेतो उस पुराने पार्क में आइयेजिसमें उस पुरानी दोपहर काराज़ आज भी ताज़ा हैबहुतों ने छुआ होगा उस बड़े पत्थर कोपर आपके हाथों का एहसासआज भी ताज़ा हैप्यार कब बासी होता है!उनके साथ नहीं तो अकेले ही सहीफिर छुप कर बैठिये, उनका अंदाज़-ए-इकरारआज भी ताज़ा हैचमकती हँसी के लिबास के पीछेअन्दर फीके होContinue reading “पुराना पार्क”
पता नहीं जब झगड़ा क्या था
कोई जन्नत का तालिब है, कोई ग़म से परेशान हैगर्ज़ सजदा करवाती है ,यूं ही इबादत कौन करता है यूं ही सच्चा था सब अगर, फिर सपना क्यों थाअगर इश्क भी था तेरा-मेरा, तो अपना क्या था जो उड़ना ही था हमको, हालात की बेदर्द आँधी मेंचलते रहना था ही बेहतर, उस मोड़ पर आखिर रुकना क्या थाContinue reading “पता नहीं जब झगड़ा क्या था”
महताब
मेरी सोच का महताब वैसा ना हैजैसा देखा होगा तुमने फलक परये ना निकलता है रात मेंना डूबता है दिन मेंगुरनूर है मेरे दिल में, जैसे कोईना भूली हुयी याद वो यादजो कभी नरम फूल थीऔर रखा था जिसेमैनें अपनी ज़िन्दगी की किताब मेंसहेज करमाँ की दुआओं की तरह पर किताब के सीले हुए पन्नेContinue reading “महताब”
तुम आये नहीं घर मेरे बहुत दिन से
तुम आये नहीं घर मेरे बहुत दिन सेलगता है मेरे ख़्वाब गये हैं छिन से बदला नहीं है कुछ अब भीये ईंटों का ढाँचा अब तक खड़ा हैकुछ नाज़ुक किनारों को अगर छोड़ दोमेरा दिल सख्त है अब भी बहुतज़िन्दगी भी दौड़ रही हैसेकण्ड की सुई के साथकुछ इस पेशेवराना अंदाज़ मेंजैसे इसे भी किसी शो-रूम मेंContinue reading “तुम आये नहीं घर मेरे बहुत दिन से”
मन का जहाज
गिराया वक़्त ने बहुत लेकिनबेशर्म निकला मैं भी बहुतइतना किअब कोई चोट दर्द नहीं देतीअब कोई गाली खीझ नहीं देतीअब कोई हार ग़म नहीं देतीअब कोई बात कोई रंग नहीं देतीफिर भी बस इसी सोच मेंजीता रहता हूँ मैंतलाश में उस चाँद कीहै इसी दुनिया में जोजहाँ जा सकता है सिर्फमन का जहाज। -अशांत
तिनका
एक तिनका हूँ मैं उस बूढ़े पेड़ काझूमता खड़ा है जो उस मोड़ परसुलभित,प्रसन्न था मैं भी कभीढोते हुए उसकी पत्तियाँपर आज बात कुछ और हैगिर गया हूँ मैं,सूखी सारी पत्तियांइस धुप में जला, झुलसाहो कांतिहीनलू के थपेड़ों के साथपहुंचा मैं एक आँगन मेंकि कुछ शीत मिल जाएआशावान था मैंपर था शायद भूल गयाटूटे हुए को सहारा मिलताContinue reading “तिनका”
तलाश अभी जारी है….
आईना देखता हूँ रोज़तलाशने चेहरा अपनापर हर रोज़ ही,सामनेकोई और शख्सखड़ा नज़र आता है निकलता हूँ जब घर सेढूँढने इंसान कोई जैसे अपनाअफ़सोस, हर रोज़ हीहर शख्समुझसे जुदा नज़र आता है शोहरत,रसूख तय करते हैंआज कीमत जब इंसान कीहै रश्क,जो समझना था बहुत पहलेवही राज़मुझे आज समझ आता है -अशांत
संगम
प्रस्तुत लघु-कथा एक कल्पना मात्र है। किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति या किसी वस्तु से किसी भी प्रकार की समानता, मात्र एक संयोग है। लेखक का आशय किसी भी विचारधारा या मनुष्य को चोट पहुँचना कदापि नहीं है। दिसम्बर की ये सर्द सुबह लाखों आवाजों से भरी हुई थी। इंसानों का हुजूम कोहरे की घनी चादरों को हरातेContinue reading “संगम”