बूढ़ी गायें

बूढ़ी गायेंसब तरह से थक कर सड़कों पर डिवाइडर सी खड़ी हो जाती हैं। परसों मेरी एक से आँखें मिलीये पूछा उसने-क्या तुम्हें भी किसी ने छोड़ दिया? कोई उत्तर नहीं था मेरे पासबस कुछ दूर आगे जा कर-गालों पर पानी सा जम आया। व्यक्ति चला जाता हैप्रेम नहीं जाता;बाँट देती हैं जीवनस्मृतियाँ सड़कों परContinue reading “बूढ़ी गायें”

झूठी आशा

झूठी आशा पाल ली थी मैंनेतुम में ढूँढ़ने लगी थी मैं अपना आधारये सोचती थी-मैं हँसूँ तो तुम भी हंसोमैं रोऊँ तो तुम भी रोओ;मेरे बिना खुश या दुःखीकैसे हो सकते हो तुम? स्कूटी पर तुम्हारे पीछे बैठकरतुम्हें कभी नहीं छुआकहीं तुम तन से भी अपने न हो जाओ। तुम्हारी अनवरत बातों कोबस सुना जवाबContinue reading “झूठी आशा”

फिर नहीं होगा

घुट के जीना होगा अब पर मरना नहीं होगाये प्यार जाना अब हमसे फिर नहीं होगा मिले थे जिन मोहल्लों में दिल के तुमसे छिप कर हमअब उन गलियों में जाना जाना फिर नहीं होगा ये माना देर कर दी हमने तुमको खुद को बताने मेंज़िन्दगी अब भी होगी मशविरा पर हमारा नहीं होगा तुम्हारेContinue reading “फिर नहीं होगा”

व्यग्र

क्षत-विक्षत हृदय के संग मन के हुये सब भाव अपंगव्याकुलता से त्रस्त हर अंगअवसाद रूपी लिपटा भुजंग,कितने पूछोगे प्रश्न अविरामअब कितनी परीक्षा लोगे राम? नहीं द्वेष किसी से मेरा कोईकभी न चाहूँ कि रोये कोईनिज हेतु दे दे प्रेम जो कोईइससे अधिक नहीं इच्छा कोई,कब तक लोगे अपराधी मेरा नामअब कितनी परीक्षा लोगे राम? थाContinue reading “व्यग्र”

अपनी चीज़

दुःख है! हाँ, बहुत दुःख है!पर अपनी ही बनायी हुयीकैसे फेंक दे कोई चीज़अपनी ही बनायी हुयी?इंसान नहीं फेंक पाताअपनी आँख,कान, नाक, चमड़ीऔर हृदय….तो कैसे फेंक देअपना पाला हुआ दुःख,वो दुःख जो लिपटा है प्रेम में। जान लीजियेदुःख देता है पूर्णता को प्राप्त प्रेमजब साथ नहीं आ पाता। पर प्रेम का बीज खिलाता है नवContinue reading “अपनी चीज़”

खाली सुबह

आज,न सूरज हैन हवा हैन रोशनी हैन सुख हैन दुःख है न सफलता हैन असफलता हैन साँसें हैंन मृत्यु हैन ही तुम हो;आज सुबह खाली है-जिसमें सब निरन्तर गिरा जा रहा है,अब इच्छा हैकहीं तो ज़मीन मिलेथके हुये पैरों कोचोटिल आत्मा को। – अशान्त

निराकार

जब प्रेम हमारा निश्छल था  फिर क्यों न वो साकार हुआ, न रूंदन था न क्रंदन था  फिर भी न कुछ आकार हुआ।  निज तप में तप कर हम दो  जब हुये थे उस पावन क्षण एक,  न मिले हाथ पर हृदय मिले दो  भाव प्रस्फुटित हुये थे अनेक।    उस क्षण कहा था कण-कणContinue reading “निराकार”

किस्मत

ऐ हवा तू हर दम घुली हुयी है उनकी साँसों में काश! मेरी साँसों की किस्मत तुझ सी होती ऐ अब्र तेरा क्या तू जब चाहे बरस पड़ाकाश! मेरी आँखों की किस्मत तुझ सी होती ऐ क़लम तू क्यों छूती है उनकी उंगलियाँकाश! मेरे हाथों की किस्मत तुझ सी होती ऐ मौसिक़ी तेरा तार्रुफ़ हैContinue reading “किस्मत”

गमन

शेखर, जिन्हें आप पहले भी पढ़ चुके हैं, उन्होंने किसी एक जगह से गमन पर साथ में और क्या क्या जाता है और मन क्या क्या सहता है उसे सहजता से शब्दों में उतार दिया है। यह कविता स्मृतियों के माध्यम से भावों का गमन है…. सामान बाँध लिया है मैंनेकुछ बक्से में रख लियाContinue reading “गमन”

हरसिंगार

तुम प्रेम होतुम हरसिंगार का फूल हो;खिलते हो कुछ देरपर जीवन महका जाते हो रात तलक खिलते होसुबह ज़मीं बर्फ़ कर जाते हो,बिन कर तुमको हाथों सेकिया आंखों से आलिंगनपूजा की थाली में रखाआस्था का तुम निज आभूषण। हमसफ़र हरसिंगार काबन पाना बहुत ही मुश्किल हैकहना किसी को अपनाअपनाना बहुत ही मुश्किल है,अविवेकी प्रेम हूँContinue reading “हरसिंगार”