टूटा हुआ दिल कवितायें रच सकता है पर टूटा हुआ मन नहीं। पता नहीं दुबारा कब कविता लिखने का मन होगा जो कि प्रतिक्रियात्मक नहीं अपितु नैसर्गिक भावों कि अभिव्यक्ति होगी। तब तक शेखर लिखती रहेंगी और उनकी लेखनी आप सबसे साझा होती रहेंगी। आसमान की ये स्याह चादर मेरे लिये कुछ छोटी सी पड़Continue reading “खुले पैर”
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अंतिम कविता
तुम्हारी निर्ममता से क्षत-विक्षतरो-रो कर सूख गया मेरा क्लान्त हृदयनींव है असफलता और दुःख कीतुम्हारे सामीप्य को किये गयेमेरे समस्त प्रयास काश! तुमने मुझसे झूठ न बोला होता। भौतिकता की वेदी परमेरे सरल भाव मार दिये तुमनेकाश! तुम्हें सामने कुछ कह पाता मैंकाश! तुमसे घृणा कर पाता मैंतुम्हारे प्रति मेरा प्रेमकर देता है पराजितमेरी हरContinue reading “अंतिम कविता”
ब्लॉक्ड
आँखों में तुम्हारा चित्रउंगली पर तुम्हारा स्पर्शमन में तुम्हारे विचारहृदय में प्रेमसब जैसा था जम गयामैं फॉर्मली ब्लॉक कर दिया गया। मुझे बोलनी कड़वी बातेंजो मेरे मन से नहींमेरे मुँह से निकली थीकिसी संबंध की समाप्तिमाँगती है कारणमैंने किया निश्छल प्रयास देने को कारणनदी ऐसे ही तो राह नहीं बदलतीज़मीन ऐसे ही तो नहीं सूखतीमेरेContinue reading “ब्लॉक्ड”
ब्यूटी स्लीप
ब्यूटी स्लीप- पहली बार यह शब्द तुम से सुना थामन में आया था बस यह विचारजो सहज ही सुंदर हैउसे क्या आवश्यकता आडम्बर कीशायद इसीलिये नहीं अच्छा लगा कभीमुझे तुम पर मेकअप;यह पितृसत्ता नहींतुम्हारे प्रति मेरी श्रद्धा है। आज तुम सज रही होगीसबको सुंदर दिखने कोतुम मेरी नहीं थी कभी,परउसका आभास आज हुआ हैकुछ कृत्रिमContinue reading “ब्यूटी स्लीप”
आत्मप्रवंचना
पिछले साल कहा था तुमनेतुम मुझसे मिलने आओगीउस नगर जो मेरा नहीं थावहाँ से चलना था हमकोजहाँ दोनों नहीं गये थे कभीतुम बिना बताये चुप हो गयेमैं कर रहा प्रतीक्षा आज भी तुम्हारे आने की। उन मनोरम स्थलों पर जहाँ तुमने नहीं जाना चाहा मेरे साथजब भी देखता हूँ तुम्हारे चित्रसत्य है मुझे नहीं होताContinue reading “आत्मप्रवंचना”
एकपक्षीय निर्णय
किसी पेड़ के तने की तरहतुम मेरे जीवन की स्थायी आशा नहीं थेतुम फूल थेतुम्हें मुरझाना ही था,जिसे तुमने प्रेम समझावो अभिव्यक्ति थी आत्म-ग्लानि कीमेरे पूर्ण जीवन में तुम्हारा सिसकता चेहरामुझे अच्छा नहीं लगतामैं क्या करती उसके सिवाजो मैंने कियाएक अच्छे लिबास से हटानी पड़ती हैअनचाही कतरन। तुम एक रोमांच थेचाहिये होता है स्थायित्व जिसकेContinue reading “एकपक्षीय निर्णय”
कान्हा नैश्नल पार्क
मुझे याद है कान्हा नैश्नल पार्क की वो सुबहजहाँ पहुँची थी मैं एक झुंड के साथसुना था वहाँ रहते हैं बाघ और सियारहम सब में रहता है बाघ और सियार,मेरे लिये भी सब नया थाकिसी ने मुझे हाल में “फौक्सी” कहा थासच कहूँ तो मुझे तुम याद भी नहीं थेगलती तुम्हारी है तुमने मुझे कभीContinue reading “कान्हा नैश्नल पार्क”
पिछले दिसम्बर
पिछले दिसम्बर इसी ठंड मेंमैंने तुमको भीड़ में देखा था,मुझे पता था कि उन सैकड़ों लोगों मेंतुम सिर्फ़ मुझे देख रहे होसभी सजावट तुम्हारे प्रेम का विस्तार थीजो कि सिर्फ मुझे दिखाई दे रहा था;इस दिसम्बर सब फिर वैसा हैफिर सजावट हैपर तुम्हारे प्रेम का विस्तार नहींसब संकुचित हैमेरी पीठ पर अनलिखे शब्द पढ़ने कोतुमContinue reading “पिछले दिसम्बर”
अंतिम शब्द
कुछ शब्दकुछ किताबेंकुछ बातेंकुछ आवाज़ेंकुछ शिकायतेंकुछ नख़रेकुछ इशारे कुछ सहारेकुछ किनारेकुछ मुस्कानेंकुछ आँसूकुछ तुम कुछ हम-सब पीछे छूट गये हैंइस जन्म में इनका अर्थ नहीं निकलेगामुझे मिलेगा मोक्षतुम बिन जीने के बादमैं फिर कभी नहीं आऊँगा;अगर मेरी बातें असर करेंगी अगले जन्मतो हो सके तो मेरे प्रेम को अपनाना तुममैं नहीं भी रहूँमेरी असफलता कोContinue reading “अंतिम शब्द”
संगीत
जब तक तुम थे प्रेम संगीत था,तुम्हारे जाने के बादसुर हैंस्वर हैंताल है, परसंगीत नहीं है;कहीं दब गया है भीतर प्रेम भी-सब बहुत प्रैक्टिकल है। सुना है तुम अब दूसरे कमरे में रहते होवहाँ और लोग हैं तुम्हारे साथक्या बचा है वहाँ मेरा स्पर्श?क्या बचा है वहाँ मेरा अस्तित्व?रस्में बहुत मजबूत होती हैंतुम्हारा बदला रूपContinue reading “संगीत”