मैं जब भी गिरता ख़ुद ही उठ जाता थामाँ ने माँगी थीं बेपनाह दुआयें मेरे लिये एक दौर बड़ी कशमकश थी ज़िन्दगी मेंजब आये सुकून साथ लाये तुम मेरे लिये मालूम हुयी वालिदैन की दी छत की क़ीमतजब निकला शहर में ढूँढ़ने मैं घर मेरे लिये बड़ी नफ़ासत है आज उनकी अदाओं मेंज़ुम्बिश है उनकेContinue reading “दुआ”
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प्रेम निवेदन
एक निवेदन तुमसे हैकरना तुम स्वीकार प्रिये,प्रेम रत्न से सदैव तुमकरना अपना श्रृंगार प्रिये। यह जीवन का सूर्य प्रखरशीतल हो तुम छाँव प्रिये,मैं पृथ्वी सा घूमूँ नित्यधुरी तुम मेरा तुम आधार प्रिये। मैं निःशक्त हो चला था शिथिलआशा का तुम आगार प्रिये,मरुस्थल की मरीचिका मेंउपवन का तुम उपहार प्रिये। स्पर्श तुम्हारा नहीं आभासीतुम सत्यता काContinue reading “प्रेम निवेदन”
प्रेमी मन
ये मौन प्रेम की प्रखर कल्पनानहीं यथार्थ में सुखदायी,प्रेम फलता है स्निग्ध स्नेह सेनहीं इसने आदर्शों की सत्ता चाही। नैतिकता बसती है स्वत्व मेंहै उसमें भी सहज अहं भाव,प्रेम निर्झर स्व के ह्रास काद्वय का उसमें सदा अभाव। प्रेम कहे को कह सकते हैंसहज निबाह है बहुत कठिन,प्रेम अगन में जले जो मनउसके कटते नहींContinue reading “प्रेमी मन”
परिभाषा
मुझे इस जीवन तक ले आयीप्रेम को परिभाषित करने की आकांक्षामोक्ष से भी बड़ी हो गयीप्रेम को परिभाषित करने की आकांक्षा;निरर्थक हो गये सदियों के प्रयत्नतुमसे मिलते ही,ज्ञात हुआ तुम्हें सुनते हीप्रेम नाद-ब्रह्म है-उसे अनुभूत किया जा सकता हैपरिभाषित नहीं। मैने सोचा- तुम कौन हो?कहीं से कोई स्वर गूँजा-मैं कालातीत और अलौकिक प्रेम कीसरल, सहज,Continue reading “परिभाषा”
दियलिया
रेलगाड़ी ने सीटी दे दी थी। इस बार अंजलि को विदा करने कोई नहीं आया था। किसी ने न तो हाथ पकड़े थे, न बोगी की जंग लगी रेलिंग और न ही बिना छुये किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा था। सब फीका था। इस बार तो उसके आँसू भी खारे नहीं थे। आजContinue reading “दियलिया”