शहर की बाढ़

हिमालय की आँखों का पानीशहरों में पहुँच करबन जाता है बाढ़;इस पानी में-नहीं तैरती कोई नाँवनहीं पलती कोई मछली,शहरों में आकर हिमालय का पानीजीवन की तरहखारा हो जाता है। – अशान्त

खोया शहर

इन्सान बदलें तो चलता हैक्यों बदल जाते हैं शहर? बदला हुआ शहर बदल देता हैउन यादों कोजिन्हें उड़ाया था धुँए में हमनेनाचने को उसी आबो हवा मेंजिसमें मैं पैदा हुआऔर मर जाना चाहता हूँ;बड़ा अजीब हाल है अबनयी कहानियों वाले मेरे शहर कीहवा अब बासी हो गयी हैजहाँ नाचते थे हमउन कोनों में उदासी होContinue reading “खोया शहर”

खुले पैर

टूटा हुआ दिल कवितायें रच सकता है पर टूटा हुआ मन नहीं। पता नहीं दुबारा कब कविता लिखने का मन होगा जो कि प्रतिक्रियात्मक नहीं अपितु नैसर्गिक भावों कि अभिव्यक्ति होगी। तब तक शेखर लिखती रहेंगी और उनकी लेखनी आप सबसे साझा होती रहेंगी। आसमान की ये स्याह चादर  मेरे लिये कुछ छोटी सी पड़Continue reading “खुले पैर”

कान्हा नैश्नल पार्क

मुझे याद है कान्हा नैश्नल पार्क की वो सुबहजहाँ पहुँची थी मैं एक झुंड के साथसुना था वहाँ रहते हैं बाघ और सियारहम सब में रहता है बाघ और सियार,मेरे लिये भी सब नया थाकिसी ने मुझे हाल में “फौक्सी” कहा थासच कहूँ तो मुझे तुम याद भी नहीं थेगलती तुम्हारी है तुमने मुझे कभीContinue reading “कान्हा नैश्नल पार्क”

पिछले दिसम्बर

पिछले दिसम्बर इसी ठंड मेंमैंने तुमको भीड़ में देखा था,मुझे पता था कि उन सैकड़ों लोगों मेंतुम सिर्फ़ मुझे देख रहे होसभी सजावट तुम्हारे प्रेम का विस्तार थीजो कि सिर्फ मुझे दिखाई दे रहा था;इस दिसम्बर सब फिर वैसा हैफिर सजावट हैपर तुम्हारे प्रेम का विस्तार नहींसब संकुचित हैमेरी पीठ पर अनलिखे शब्द पढ़ने कोतुमContinue reading “पिछले दिसम्बर”

कुल्हाड़ी

किसी ने पेड़ गिराने कोउसके तने पर कुल्हाड़ी मारीअनगिनत बारिशोंअनगिनत आँधियोंअनगिनत दोपहरोंको झेल चुका था जोसहज ग्रहण कर लिया उसने वह प्रहार;विडंबना ये हैकुल्हाड़ी चिपक गयी हैबिछड़ी प्रेमिका सीदिख रही है तने पर रस की एक लक़ीरजो हर बीतते दिन के साथ परत दर परत मोटी होती जा रही है। पेड़ खड़ा हैपत्तियाँ हरी हैंपरContinue reading “कुल्हाड़ी”

एक प्रेमी की असमय मृत्यु

कुछ दिन ही बीते हैं, परतुम्हारे सारे गीततुम्हारे सब वचन तुम्हारी सारी भावनायेंतुम्हारा सारा प्रेम सब मर चुका है,जो मेरा होने का आभास था अब तकसत्य आवरण में हो चुका है किसी और का। क्यों आवश्यक होता हैकिसी के साथ वैसा अन्यायजैसा हुआ था आपके साथहर साथ वाला प्रेमी नहीं होता,क्यों आवश्यक होता हैसुविधा कीContinue reading “एक प्रेमी की असमय मृत्यु”

मेरी विजयदशमी

हर रावण दशानन नहीं होताहर बाली शत्रु-शक्तिहन्ता नहीं होतामेरे राम, तुम तो दयानिधान होआज वध कर दो उस पाप काजो खा रहा है धीरे-धीरेमेरा प्रेममेरी आत्मामेरे जीवन को। हे राम! समाप्त कर दो हर भावजो पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकतामेरी गीली आंखों में काई जम गयी हैप्रार्थना में जीभ लटपटाने लगी हैअब पढ़ लो मेरेContinue reading “मेरी विजयदशमी”

प्रतिध्वनि

निज-जीवन की निराश्रय डोरमुझे आज कहाँ ले आयी हैमैं याचक था सरस प्रेम काये नीरसता आततायी है मन अधीर मुख गम्भीरये अंतरतम की परछाईं हैएक सुखद क्षण की अदम्य खोजये आज कहाँ ले आयी है माने नहीं जीवन के जो प्रतिमानवही विचलित क्यों कर जाते हैंनिज-चयन से नहीं चढ़े जो सोपानक्यों अब वही पश्चाताप करातेContinue reading “प्रतिध्वनि”

चैन

मेरे जज़्बों की जुम्बिश तुम्हारी धड़कन से हैजो तुम्हें चैन हो तो हमें भी कुछ चैन मिले मेरे अक्स की तामील तेरी हर तस्वीर से हैजो तुम दिखो तो हमें भी कुछ चैन मिले मेरी कसक का सबक तेरे रश्क़ से हैजो तुम हँसो तो हमें भी कुछ चैन मिले मेरा तुझसे राब्ता तेरे हरContinue reading “चैन”