बुझ गयी है दीये की बातीडूब कर अपने ही घी के सागर मेंयह नहीं आवश्यकघी हर बाती को जला ही देगा,तुम्हारा होना ही मेरा होना थाऐसा सोचा था मैंनेपर जलने की जगहडूब गया मैं तुम में ही,अब शायद फिर कभी नहीं जलूगानदी का रहता क्या अस्तित्व मिल कर सागर सेनहीं उतरायेगे मेरे भाव तुम्हारी सतहContinue reading “प्रकाश की खोज”
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राबता
तुम नहीं हो फ़ेहरिस्त में मेरे यारों कीयूँ ही नहीं मेरी पलकें आज भीगी हैं,कोई तो राबता रहा होगा तुमसेयूँ ही नहीं ज़मीं चाँद की भीगी है। कुछ कह ही दो आज तुम हमसेअर्से से कुछ मीठा नहीं सुना हमने,अब बिखर जाओ तुम मेरी ज़िंदगी मेंबरसों से कोई फूल नहीं चुना हमने। तुम चले जातेContinue reading “राबता”
Guilt in Love
When the guilt wrenched heart seeks freedom from painIt knows all entreaties of love shall go in vainA good end is a misnomer & universal lieSpoken are words that were never meantThey penetrate deep to make a dentThere remains no other way outTo get through the immeasurable pain. I can’t touch you through the phoneToContinue reading “Guilt in Love”
मेरी विजयदशमी
हर रावण दशानन नहीं होताहर बाली शत्रु-शक्तिहन्ता नहीं होतामेरे राम, तुम तो दयानिधान होआज वध कर दो उस पाप काजो खा रहा है धीरे-धीरेमेरा प्रेममेरी आत्मामेरे जीवन को। हे राम! समाप्त कर दो हर भावजो पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकतामेरी गीली आंखों में काई जम गयी हैप्रार्थना में जीभ लटपटाने लगी हैअब पढ़ लो मेरेContinue reading “मेरी विजयदशमी”
प्रतिध्वनि
निज-जीवन की निराश्रय डोरमुझे आज कहाँ ले आयी हैमैं याचक था सरस प्रेम काये नीरसता आततायी है मन अधीर मुख गम्भीरये अंतरतम की परछाईं हैएक सुखद क्षण की अदम्य खोजये आज कहाँ ले आयी है माने नहीं जीवन के जो प्रतिमानवही विचलित क्यों कर जाते हैंनिज-चयन से नहीं चढ़े जो सोपानक्यों अब वही पश्चाताप करातेContinue reading “प्रतिध्वनि”
बूढ़ी गायें
बूढ़ी गायेंसब तरह से थक कर सड़कों पर डिवाइडर सी खड़ी हो जाती हैं। परसों मेरी एक से आँखें मिलीये पूछा उसने-क्या तुम्हें भी किसी ने छोड़ दिया? कोई उत्तर नहीं था मेरे पासबस कुछ दूर आगे जा कर-गालों पर पानी सा जम आया। व्यक्ति चला जाता हैप्रेम नहीं जाता;बाँट देती हैं जीवनस्मृतियाँ सड़कों परContinue reading “बूढ़ी गायें”
झूठी आशा
झूठी आशा पाल ली थी मैंनेतुम में ढूँढ़ने लगी थी मैं अपना आधारये सोचती थी-मैं हँसूँ तो तुम भी हंसोमैं रोऊँ तो तुम भी रोओ;मेरे बिना खुश या दुःखीकैसे हो सकते हो तुम? स्कूटी पर तुम्हारे पीछे बैठकरतुम्हें कभी नहीं छुआकहीं तुम तन से भी अपने न हो जाओ। तुम्हारी अनवरत बातों कोबस सुना जवाबContinue reading “झूठी आशा”
व्यग्र
क्षत-विक्षत हृदय के संग मन के हुये सब भाव अपंगव्याकुलता से त्रस्त हर अंगअवसाद रूपी लिपटा भुजंग,कितने पूछोगे प्रश्न अविरामअब कितनी परीक्षा लोगे राम? नहीं द्वेष किसी से मेरा कोईकभी न चाहूँ कि रोये कोईनिज हेतु दे दे प्रेम जो कोईइससे अधिक नहीं इच्छा कोई,कब तक लोगे अपराधी मेरा नामअब कितनी परीक्षा लोगे राम? थाContinue reading “व्यग्र”
अपनी चीज़
दुःख है! हाँ, बहुत दुःख है!पर अपनी ही बनायी हुयीकैसे फेंक दे कोई चीज़अपनी ही बनायी हुयी?इंसान नहीं फेंक पाताअपनी आँख,कान, नाक, चमड़ीऔर हृदय….तो कैसे फेंक देअपना पाला हुआ दुःख,वो दुःख जो लिपटा है प्रेम में। जान लीजियेदुःख देता है पूर्णता को प्राप्त प्रेमजब साथ नहीं आ पाता। पर प्रेम का बीज खिलाता है नवContinue reading “अपनी चीज़”
खाली सुबह
आज,न सूरज हैन हवा हैन रोशनी हैन सुख हैन दुःख है न सफलता हैन असफलता हैन साँसें हैंन मृत्यु हैन ही तुम हो;आज सुबह खाली है-जिसमें सब निरन्तर गिरा जा रहा है,अब इच्छा हैकहीं तो ज़मीन मिलेथके हुये पैरों कोचोटिल आत्मा को। – अशान्त