सख्त दरवाज़े

सख्त दरवाज़े थे मेरे भी घर के पर वक़्त के साथ खुल गए वो जो कालिख़ लगी है कुण्डी पे और जो दरारे हैं पल्लों पे असर है उस आग का  जो सालों पहले मैंने लगाईं थी जो निशान था मेरे हाथ पे सर्जरी से उसे दिल पर लगवा लिया था  तब से घर के सारेContinue reading “सख्त दरवाज़े”

अनलिखा ख़त

कल आधी रात पढ़ा वो ख़तजो तुमने कभी लिखा ही नहींआंसुओं की स्याही भलाक्या कोई रंग लाती है! फिर भीआज सुबह से मन भारी हैलगता हैज़माने भर की धुंध मेरे कमरे में जमा हैतुम नाराज़ थींतो बता दिया होता यूं हीइतने कड़े ख़त कीआखिर क्या ज़रूरत थी! रोज़मर्रा की तरहजाते हुए मंजिल कोअपने जूते हीContinue reading “अनलिखा ख़त”

इलाहाबाद

तेरे पास था तो इतनी कद्र ना थी आज जाना तू सिर्फ शहर नहीं कुछ और  इमारतों पर चढ़ ये मुल्क  शायद ऊंचा हो जाए पर इलाहाबाद! तेरी रूह सिरमौर है कुछ बात तो है तुझमें कि कैफे की महंगी कॉफी तेरी चाय से हमेशा हार जाती है कि तेरे यहाँ  सर्दी में इश्क अमरुदContinue reading “इलाहाबाद”

घाव अभी ताज़ा है

कल ही की तो बात है मैं गिरा था अपने घर के आँगन में बस हलकी सी खरोंच ने माँ को रुला दिया था उस दिन दिल्ली में घायलों को टी.वी. पर देखा तो सोचा क्या बीती होगी इनकी माओं पर मेरी चोट तो हल्दी से ठीक हो गई पर यहाँ घाव अभी ताज़ा हैContinue reading “घाव अभी ताज़ा है”

मैं जिंदा हूँ

सोते हुए बीच रात आज आँख खुल गई माथे पर था पसीना सांसें भी कुछ तेज़ थीं  भागती धड़कन से एहसास हुआ मैं जिंदा हूँ एक सपने में अभी-अभी देखी बीते सालों की पहाड़ ज़िन्दगी जिस पर चलते,चढ़ते  थक गया था मैं रुक गया था मैं पैर फिसला, हवा में कुछ गोते खाए नीचे गिरकरContinue reading “मैं जिंदा हूँ”

Personal ambitions in Group activities

Human being is a social animal evolving continuously. Apart from various Darwinian factors of evolution, there are some abstract occurrences of daily life that lead to gradual development of human beings. Everyone wishes to achieve something in proportion to his capacity and capabilities. It can be termed as “individual ambition” by virtue of which a person works towardsContinue reading “Personal ambitions in Group activities”

मिट्टी की तलाश में

मन में जो आया बस उसे लिख रहा हूँ… पता नहीं ये कविता है कि नहीं!! ना ये पता है कि ये साहित्य किसी भी वर्ग में स्थान पाने के लायक भी है या नहीं.. परन्तु इसका पूर्ण विश्वास और संतोष है कि ये रचना एक सच्ची हार्दिक अनुभूति का प्रतिफल है!! रात को चमकती लाइटContinue reading “मिट्टी की तलाश में”

I never had a dream!!

As a child I never had a dreamI grew upTaking life the way it cameScolding never made me upsetGoing school was always a funI slept in peaceWaking every morning super freshSo bright were the daysUnlike the ones I experience todayI have become more sanePerhaps more prudent tooBut I suffer nights full of murky dreamsPile ofContinue reading “I never had a dream!!”

पल भर में

पल भर में कभी कुछ दिनों के फासले मेंकोई ख़ास बन जाता हैकल तक जो दबा सा था हसरत मेंवही रूमानी एहसास बन जाता हैलिख लिख कर जिनकी याद मेंमेरी कलम की स्याही सूख गईजिनके जाने से मेरी बंधी हुईसारी उम्मीदें टूट गईंवो अपना ही जब अनजानासरेआम हुआ जाता हैतो किस अदालत मेंरखूँ मैं अपनीContinue reading “पल भर में”

पतंग

कोरा कागज़ जब हाथ से छूटता है तो हवा में असंख्य करतब दिखाने के पश्चात अंत में धरती से आ मिलता है. एक ऐसा मिलन जिसका पुनर्ज्ञान शायद उसे उसी क्षण होता है जब वो किसी सहारे से अलग होता है. वही कागज़ जब आकार पाता है, उसे किसी डोर से जोड़ा जाता है जिसकाContinue reading “पतंग”