अर्थ बदल जाते हैं

अर्थ बदल जाते हैंबदलती हैं भावनायें भीजो पावन था कभीहो जाता है पतित;तुम्हारे एक झूठ औरबनावटी चरित्र ने,एक ज़िंदा पेड़ मेँसुलगता चूना दाल दिया। -प्रशान्त

हो इश्क़ भला तो ऐसा हो

जो तड़प के आख़िर टूट ही जायेहो इश्क़ भला क्यों ऐसा होजो अपनी आग ही सह न पायेहो इश्क़ भला क्यों ऐसा होसाथ कदम जो चल न पायेहो इश्क़ भला क्यों ऐसा हो भवरों में भी जो डूब न पायेहो इश्क़ भला तो ऐसा होतासीर कभी न बुझने पायेहो इश्क़ भला तो ऐसा होजीने मरनेContinue reading “हो इश्क़ भला तो ऐसा हो”

दो औरतें

क्या बुरी है वो औरत तुमसे?क्यों उसे सब वेश्या कहते हैं?वीभत्स तो तुम भी उतनी होजितनी कि वो है,पर अंतर है कुछवो वेश्या अपनी मर्ज़ी से नहींतुम चरित्रहीन अपनी मर्ज़ी से हो। तुम उतारती हो कपड़े बंद कमरों मेंकरने को सिद्ध अपने स्वार्थवो दिखाती है बदन बाज़ारों मेंजीने के लिये,तुम्हारा काम बुरा नहीं क्योंकितुम्हारे पासContinue reading “दो औरतें”

मुझे अम्बेडकर देख रहे हैं

मुझे अम्बेडकर देख रहे हैं आजअपनी उन्हीं आँखों सेपढ़-पढ़ कर जिनसे लिखा था उन्होंने संविधानक्यों मुस्कुराते हैं वो मुझ पर?मेरी असफलता, मेरी कमीया प्रेम पर मेरा आश्रय देख कर? मैंने उन्हें धोखा दिया है लेकिन,ना पढ़ कर संविधान। जब तक सोयेगा कोई भूखाइस देश-जहान मेंतब तक,प्रेम पाप है! -प्रशान्त

ख़ुदा सुनेगा भी तो कैसे

बस छत तक जाने का इरादा हो जिसकाआसमान में सुराख़ वो करेगा कैसे? बुझ जाता है दिल फ़िकरों से जिसकाज़िन्दगी का सिकंदर वो बनेगा कैसे? झोपड़ी में ही महल बस जायेगा जिसकाहक़ की लड़ाई आख़िर वो लड़ेगा कैसे? मतलब के लिये बदलता रंग हो जिसकाउसकी दुआ ख़ुदा सुनेगा भी तो कैसे? -प्रशान्त 

शान्त शाम

बहुत सालों बादआज की तारीख़ वाली शामबिल्कुल शान्त हैठीक वैसे ही जैसे शान्त थी तुम उस दिनसंचारित था जब प्रेमदो जोड़े होठों मेंजो आशा-प्रत्याशा मेंशर्माते थरथराते थे पर वह शान्ति मलिन न थीउद्वेग था उसमें पर ग्लानि नहींवो स्वतंत्रता नहींआज महँगे कपड़ो में भीजो नग्न होते हुये भी रहती थी तुम्हारे सामनेजब बिना कुछ सोचेContinue reading “शान्त शाम”

मिलन

सुना है बरसों पहलेबनारस से कोई नांव निकली संगम की तरफ पार कर के कितनी ज़मीनकितने महासागरकितने सूखेकितनी बरसातेंकितने मौसमआखिर उसे मिल ही गयावो मांझी प्रेम कामिलाने को उस धारा सेरुकी हुयी है जो बरसों से इसी आस मेंकि तुम आ जाओतो आगे हम और तुम साथ चलें-प्रशान्त

मेरी ज़िन्दगी

मेरी ज़िन्दगी का हालउस ज़मीन जैसा हैजो है तो बहुत बड़ी,जिस पर है नज़र हर किसी की,पर नहीं है उसकामालिक कोईइसलिये,अब वहाँ फूल नहींबस, झाड़-झंखाड़उगते हैं। -प्रशान्त

फ़िर आयेंगे

मर तो जायें हम उनके जाने से पर,कह गये हैं वो कि हम फिर आयेंगे। जा चुके थे जो बादल बारिशों के बाद,साथ उनके सर्दियों में वो फ़िर आयेंगे। किताबों में जो किस्से लिखे न गये,ढलती उम्रों में वापिस वो फ़िर आयेंगे। मेरे साथी जो मेरे शहर से गये,किसी शाम मिलने वो फ़िर आयेंगे। मैंContinue reading “फ़िर आयेंगे”

वो तो मेरा माज़ी था

हाँ ये सच है कि उस वक़्त मैं राज़ी थापर जो बीत गया,वो तो मेरा माज़ी था फ़ीके ही सही मेरी क़लम के अशआर हैं येजो छूट गया गहरा स्याही में,वो तो मेरा माज़ी था तसव्वुर में मेरे आज अक्सों की है दौलतसच्ची थी तस्वीरें जो,वो तो मेरा माज़ी था हिज्र की ठंडी आहें जमाContinue reading “वो तो मेरा माज़ी था”