उम्र के साथफैलता जाता है बरगदताड़ ऊँचा होता जाता है;शहर में दो बड़े आदमी हैंएक की जड़ों का अंत नहींदूसरा अकेले हवा खाता है;मिडल क्लास हो किंकर्तव्यविमूढ़लटका है त्रिशंकु साइन दोनों के बीच;झूठी हँसी के साथऊँचे नीचे बैठे हैं सबसुविधा के गलियारों में;दिखें जैसे भी बाहर सेसच यही है-तीनों असन्तुष्ट हैं। – अशान्त
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बड़प्पन
जो बैठे हैं शिखरों परनहीं सबके पाँव में छाले हैं,ऊपर चमक रही है कायापर अन्दर दिल बड़े काले हैं। हर सफल नहीं है समग्र पूज्यसब नहीं सच्चे साधन वाले हैं,“मैं” पर टिका साम्राज्य है जिनकाचने सब घने बजने वाले हैं। अपना ईष्ट बना लो तुमकहाँ वो मानव ऊँचे वाले हैं,शिष्यों की जो थामे उँगलीकहाँ गुरुContinue reading “बड़प्पन”
प्रेम निवेदन
एक निवेदन तुमसे हैकरना तुम स्वीकार प्रिये,प्रेम रत्न से सदैव तुमकरना अपना श्रृंगार प्रिये। यह जीवन का सूर्य प्रखरशीतल हो तुम छाँव प्रिये,मैं पृथ्वी सा घूमूँ नित्यधुरी तुम मेरा तुम आधार प्रिये। मैं निःशक्त हो चला था शिथिलआशा का तुम आगार प्रिये,मरुस्थल की मरीचिका मेंउपवन का तुम उपहार प्रिये। स्पर्श तुम्हारा नहीं आभासीतुम सत्यता काContinue reading “प्रेम निवेदन”
प्रेमी मन
ये मौन प्रेम की प्रखर कल्पनानहीं यथार्थ में सुखदायी,प्रेम फलता है स्निग्ध स्नेह सेनहीं इसने आदर्शों की सत्ता चाही। नैतिकता बसती है स्वत्व मेंहै उसमें भी सहज अहं भाव,प्रेम निर्झर स्व के ह्रास काद्वय का उसमें सदा अभाव। प्रेम कहे को कह सकते हैंसहज निबाह है बहुत कठिन,प्रेम अगन में जले जो मनउसके कटते नहींContinue reading “प्रेमी मन”
दियलिया
रेलगाड़ी ने सीटी दे दी थी। इस बार अंजलि को विदा करने कोई नहीं आया था। किसी ने न तो हाथ पकड़े थे, न बोगी की जंग लगी रेलिंग और न ही बिना छुये किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा था। सब फीका था। इस बार तो उसके आँसू भी खारे नहीं थे। आजContinue reading “दियलिया”