दुआ

मैं जब भी गिरता ख़ुद ही उठ जाता थामाँ ने माँगी थीं बेपनाह दुआयें मेरे लिये एक दौर बड़ी कशमकश थी ज़िन्दगी मेंजब आये सुकून साथ लाये तुम मेरे लिये मालूम हुयी वालिदैन की दी छत की क़ीमतजब निकला शहर में ढूँढ़ने मैं घर मेरे लिये बड़ी नफ़ासत है आज उनकी अदाओं मेंज़ुम्बिश है उनकेContinue reading “दुआ”

असन्तोष

उम्र के साथफैलता जाता है बरगदताड़ ऊँचा होता जाता है;शहर में दो बड़े आदमी हैंएक की जड़ों का अंत नहींदूसरा अकेले हवा खाता है;मिडल क्लास हो किंकर्तव्यविमूढ़लटका है त्रिशंकु साइन दोनों के बीच;झूठी हँसी के साथऊँचे नीचे बैठे हैं सबसुविधा के गलियारों में;दिखें जैसे भी बाहर सेसच यही है-तीनों असन्तुष्ट हैं। – अशान्त

प्रेमी मन

ये मौन प्रेम की प्रखर कल्पनानहीं यथार्थ में सुखदायी,प्रेम फलता है स्निग्ध स्नेह सेनहीं इसने आदर्शों की सत्ता चाही। नैतिकता बसती है स्वत्व मेंहै उसमें भी सहज अहं भाव,प्रेम निर्झर स्व के ह्रास काद्वय का उसमें सदा अभाव। प्रेम कहे को कह सकते हैंसहज निबाह है बहुत कठिन,प्रेम अगन में जले जो मनउसके कटते नहींContinue reading “प्रेमी मन”

दियलिया

रेलगाड़ी ने सीटी दे दी थी। इस बार अंजलि को विदा करने कोई नहीं आया था। किसी ने न तो हाथ पकड़े थे, न बोगी की जंग लगी रेलिंग और न ही बिना छुये किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा था। सब फीका था। इस बार तो उसके आँसू भी खारे नहीं थे। आजContinue reading “दियलिया”

कस्टर्ड

पागल से लगने वाले विक्की ने अपने हिस्से का कस्टर्ड सामने खेल रही छोटी बच्ची को दे दिया। ****************************************************************************************** विक्की भावी अफसरों के बीच रहने वाला एक युवा कर्मचारी है। अपने काम से ज़्यादा वो अपने मुँहफट और पागल अंदाज़ के लिए प्रसिद्ध है। बीच-बीच में अधकचरी अंग्रेजी में बोले गये उसके कुछ वाक्य सभी काContinue reading “कस्टर्ड”

नये पत्ते

सामने दालान में कई सालों से खड़े पुराने पीपल के पेड़ में फिर से नये पत्ते आ गये हैं। किसलय नये पत्तों को तो ही कहा जाता है। नयी सोच भी किसलय हो सकती है और नया जीवन भी किसलय हो सकता है। अंतर बस इतना है कि किसलय वार्षिक या किसी भी सामयिक अवधि मेंContinue reading “नये पत्ते”