मृत्यु

मृत्यु सत्य है,किन्तु तभीजब वह प्राकृतिक हो,अन्यथा है वोएक भद्दा नाटकजिसे खुद हीलिखा-निर्देशितकिया गया हो,जिसे देखा भी होतुमने अकेलेऔर किया हो अकेले हीवो अंतिम अभिनय,समाप्त हो गया जिसके बादसब कुछ,रह गया खाली सभागारजिस में बैठ करतुम खुद के लिये,ताली भी ना बजा सके! -प्रशान्त

संगम

प्रस्तुत लघु-कथा एक कल्पना मात्र है। किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति या किसी वस्तु से किसी भी प्रकार की समानता, मात्र एक संयोग है। लेखक का आशय किसी भी विचारधारा या मनुष्य को चोट पहुँचना कदापि नहीं है। दिसम्बर की ये सर्द सुबह लाखों आवाजों से भरी हुई थी। इंसानों का हुजूम कोहरे की घनी चादरों को हरातेContinue reading “संगम”

दंगा

जो हुआ है हलाल  पिछले चौराहे पर, ना हिन्दू था ना मुस्लिम था  और, ना ही कोई मुर्गा था जिसे मारा गया लेने को स्वाद; वो ठंडी बे-मज़हब लाश  है सबूत, उस फ़िल्म का  जो चली थी पिछली रात  जिसका टाइटल  “दंगा” था।  -प्रशान्त  

बिना दाग़ वाला चाँद

शायद मैने सुबह देखा था उसे, इसीलिये मुझे लगा वो  बिना दाग़ वाला चाँद रोज़ सूरज छुपा देता था उसे, आज डाँक कर दूसरी छत से देखा तो पाया ना उसमें कोई दाग़ नहीं कोई परेशानी मुझे दाग़ से, टी.वी. वाले ऐड की तरह  इसके भी दाग अच्छे हैं बस रात के कमज़ोर लम्हों में, कभी-कभी होContinue reading “बिना दाग़ वाला चाँद”

लापता कर गये

ढूंढते थे पता मेरा कल जो  कभी,लोग वो ही मुझे लापता कर गये । दे दी सज़ा हमने सह भी लिया,ना जाने क्या हम ख़ता कर गये। जिनकी महफ़िल की मैं कभी शान था,वो ही आशिक़ हमें बेवफा कर गये। रंग हथेली पर प्यार का जो चढ़ना ही था,मेंहदी मेरी मोहब्बत की क्यों फना कर गये। इससेContinue reading “लापता कर गये”

तुम्हारी पीठ पर

प्रकृति के नैसर्गिक कोष सेतुमने,पायी है जो सोने सी काया,उस प्रेम-पृष्ठ पर स्याही सेकभी कोई “टैटू ” ना गुदवाना,बस,हो सके तो सहेज लेना तुम,उन हस्ताक्षर कोजो अपनी उंगली सेकभी किये थे मैंनेतुम्हारी पीठ पर। -प्रशान्त 

कल, फिर क्यों तुम्हारी याद आयी?

सब कुछ रोज़ के जैसा थादेर से उठ कर देखा तोसूरज कुछ धीमा-धीमा था!कल, फिर क्यों तुम्हारी याद आयी? पढ़ रहा आज-कल मैं जिसेप्रथम-पृष्ठ उस पुस्तक का देखा तोपाया, तुम्हारी लिखाई में लिखा मेरा नाम!कल, फिर क्यों तुम्हारी याद आयी? अधपकी सी नवम्बर की सर्दीउस पर अधखुला मेरा कम्बलपल भर में जैसे तुमने मुझको समेट लिया!कल, फिरContinue reading “कल, फिर क्यों तुम्हारी याद आयी?”

टापर (TOPPER)

भारतीय सामाजिक एवं शैक्षणिक पृष्ठभूमि में एक भिन्न भांति की व्यवस्था है जो की साधारण मनुष्यों में से कुछ सौभाग्यशालियों को ऊँचा दर्जा प्रदान करती है। जैसे ही कोई साधारण मनुष्य अपने प्रयासों, कयासों, या पहुँच के कारण इस वर्गीकरण में स्थान पाता है, तब उसका अतुल्य महिमामंडन अकल्पनीय होता है। पूर्व का साधारण सा मनुष्यContinue reading “टापर (TOPPER)”

एक पीली छतरी

पीला उत्साह का रंग है। एक ऐसा रंग जो प्रकृति के प्रकाश-पुंज सूर्य का वृहद् प्रतिबिम्ब है। उसकी अगाध ऊर्जा का सर्वत्र विद्यमान चिन्ह है। कुछ ऐसी ही ऊर्जावान लगी उदय प्रकाश जी द्वारा लिखी गयी लम्बी कहानी “पीली छतरी वाली लड़की।” २१वीं सदी के समसामायिक साहित्य की सबसे सशक अभिव्यक्तियों में इस रचना को सदैव उच्च स्थान मिलेगा।Continue reading “एक पीली छतरी”

वो भी हैं अंग तुम्हारे

ओ प्रियतमा! मत नोचवाओ तुम अपने बाल, वो भी हैं अंग तुम्हारे प्रतीक तुम्हारे स्वातंत्र्य का।  मैं प्रियतम भी फिर  कैसा सच्चा प्रेमी हूँ? अगर आधार मेरे प्रेम का  नहीं है तुम्हारे भाव  पर वो चिकनी चमड़ी है, पाने जिसको  तुम्हें जाना पड़ता है छोड़ अपना प्रेमालय  उस बाज़ार, जहाँ प्रेम मात्र  कार्ड में पढ़ने-बिकनेContinue reading “वो भी हैं अंग तुम्हारे”