ख़ुदा सुनेगा भी तो कैसे

बस छत तक जाने का इरादा हो जिसकाआसमान में सुराख़ वो करेगा कैसे? बुझ जाता है दिल फ़िकरों से जिसकाज़िन्दगी का सिकंदर वो बनेगा कैसे? झोपड़ी में ही महल बस जायेगा जिसकाहक़ की लड़ाई आख़िर वो लड़ेगा कैसे? मतलब के लिये बदलता रंग हो जिसकाउसकी दुआ ख़ुदा सुनेगा भी तो कैसे? -प्रशान्त 

शान्त शाम

बहुत सालों बादआज की तारीख़ वाली शामबिल्कुल शान्त हैठीक वैसे ही जैसे शान्त थी तुम उस दिनसंचारित था जब प्रेमदो जोड़े होठों मेंजो आशा-प्रत्याशा मेंशर्माते थरथराते थे पर वह शान्ति मलिन न थीउद्वेग था उसमें पर ग्लानि नहींवो स्वतंत्रता नहींआज महँगे कपड़ो में भीजो नग्न होते हुये भी रहती थी तुम्हारे सामनेजब बिना कुछ सोचेContinue reading “शान्त शाम”

मिलन

सुना है बरसों पहलेबनारस से कोई नांव निकली संगम की तरफ पार कर के कितनी ज़मीनकितने महासागरकितने सूखेकितनी बरसातेंकितने मौसमआखिर उसे मिल ही गयावो मांझी प्रेम कामिलाने को उस धारा सेरुकी हुयी है जो बरसों से इसी आस मेंकि तुम आ जाओतो आगे हम और तुम साथ चलें-प्रशान्त

कुछ लिखा हुआ

उसने कहा  कुछ लिख के भेजो ज़रा, मेरे शब्दों में जैसे हलचल मच गयी लड़ते लुढ़कते मुझ तक पहुंचे हैं कुछ सजते ही पेश कर दूंगा मैं भी, जैसे उस साडी वाले ने उस दिन खुद पर पल्ला डाल कर दिखाया था तुम्हें वो ज़री और कढ़ाई आज भी सजी है तुम्हारी अलमारी में, मेरी सादीContinue reading “कुछ लिखा हुआ”

मेरी ज़िन्दगी

मेरी ज़िन्दगी का हालउस ज़मीन जैसा हैजो है तो बहुत बड़ी,जिस पर है नज़र हर किसी की,पर नहीं है उसकामालिक कोईइसलिये,अब वहाँ फूल नहींबस, झाड़-झंखाड़उगते हैं। -प्रशान्त

फ़िर आयेंगे

मर तो जायें हम उनके जाने से पर,कह गये हैं वो कि हम फिर आयेंगे। जा चुके थे जो बादल बारिशों के बाद,साथ उनके सर्दियों में वो फ़िर आयेंगे। किताबों में जो किस्से लिखे न गये,ढलती उम्रों में वापिस वो फ़िर आयेंगे। मेरे साथी जो मेरे शहर से गये,किसी शाम मिलने वो फ़िर आयेंगे। मैंContinue reading “फ़िर आयेंगे”

वो तो मेरा माज़ी था

हाँ ये सच है कि उस वक़्त मैं राज़ी थापर जो बीत गया,वो तो मेरा माज़ी था फ़ीके ही सही मेरी क़लम के अशआर हैं येजो छूट गया गहरा स्याही में,वो तो मेरा माज़ी था तसव्वुर में मेरे आज अक्सों की है दौलतसच्ची थी तस्वीरें जो,वो तो मेरा माज़ी था हिज्र की ठंडी आहें जमाContinue reading “वो तो मेरा माज़ी था”

मेरी बाहों में

यूँ कुनमुनाओ मेरी बाहों मेंये रात गुनगुनी हो जाये झटक दो बालों से बरसातकुछ गुदगुदी हो जाये कोई सुन न ले किस्सा मेराकानों में बुदबुदी हो जाये बंद कर लो तुम अपनी आँखेंथोड़ा लुकाछुपी हो जाये बना लो मेरे हाथ को तकियाथोड़ी झुनझुनी हो जाये थाम लो मेरे जज़्बातों को पहलेमेरी हर बात न अनसुनीContinue reading “मेरी बाहों में”

सच्ची कोशिशों का ईनाम ख़ुदा ज़रूर देता है

सिजदे में झुके सर रोज़े की नमाजों में मालिक देता है रहमत इंसानियत के जहाजो में मेरे जज़्बे पर मेरे मालिक की नज़र है मेरे झुके सिर को वो एहतेराम देता है मैं अधूरा हूँ उसके मुकम्मल जहान में फिर भी शुक्रिया उसे सुबह-शाम देता हूँ तड़प के मर जाता है कोई जब बंद दरवाज़ेContinue reading “सच्ची कोशिशों का ईनाम ख़ुदा ज़रूर देता है”

फिर भी, प्रेमी न थे!

मिल सको तो मिलोजैसे पहली बार मिले थे तुमथोड़े से मासूमथोड़े से नाज़ुकथोड़े से अल्हड़थोड़े से ‘तुम’ सब सुन्दर था तबउस बड़े घर की तरहजिसके अंदर कोई गया नहींहर कोना नया थाअनछुआ सा, सब ढका थाधूल से बचाने वाले कपड़ों से सुन्दर थे तुम? पता नहीं!कैसे थे तुम? पता नहीं!बस इतना पता हैकुछ अलग थाContinue reading “फिर भी, प्रेमी न थे!”