एक निवेदन तुमसे है
करना तुम स्वीकार प्रिये,
प्रेम रत्न से सदैव तुम
करना अपना श्रृंगार प्रिये।
यह जीवन का सूर्य प्रखर
शीतल हो तुम छाँव प्रिये,
मैं पृथ्वी सा घूमूँ नित्य
धुरी तुम मेरा तुम आधार प्रिये।
मैं निःशक्त हो चला था शिथिल
आशा का तुम आगार प्रिये,
मरुस्थल की मरीचिका में
उपवन का तुम उपहार प्रिये।
स्पर्श तुम्हारा नहीं आभासी
तुम सत्यता का प्रमाण प्रिये,
जो छू लो तुम मैं खिल जाऊँ
मेरी आत्मा मेरा प्राण प्रिये।
मेरी प्रियतमा तुम मेरी अर्धांगिनी
प्रणय मिलन करो साकार प्रिये,
जग में वैसे सब मिथ्या है
करो सत्य का तुम संचार प्रिये।
- अशान्त