सावन क्यों इतना सुंदर हैक्यों सोया प्रेम जगाता हैजो सांसें कब की टूट चुकीक्यों उनमें प्राण जगाता है? लहराते पेड़ों पर इठलाती डालीझूम रही है बदरा काली-कालीजो बातें कब की भूल चुकीक्यों उनमें रस आ जाता है? टपक रही है पेड़ों से कल्लो रानीऔर ज़मीन पर रुका हुआ है पानीजो वक़्त कब का गुज़र चुकावोContinue reading “सावन क्यों इतना सुंदर है”
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खालीपन
कभी चाहे-अनचाहेहोना चाहिये खाली भी,क्योंकि,खाली में होती है सम्भावनाभरने की। खालीपन वो परमहंस है,जिनसे मिटता है भेद सत्य-असत्य काऔर मिल जाते हैं सच्चे मित्र। खालीपन यात्रा हैमनुष्य की देवत्व की ओर। -प्रशान्त
नशा
काश! किसी कोमेरा भी नशा हो जायेकोई मुझको भी ख़रीदेघोल ले अपने ख़ून मेंजिये मुझको अपनी साँसों में। शायद, अपना अस्तित्व खो कर हीमैं औरों को आनंद दे सकूँ। -प्रशान्त
मेरा संघर्ष
मेरा संघर्षउतना ही सुंदर हैजितनी मेरी पहली प्रेमिका। इतना सा अंतर बस दोनों मेंवो वक़्त के साथ ढल गयीये वक़्त के साथ निखर गया। सुनसान रात में जलता लैंप,मेरी किताबों की ओट मेंकोई खड़ा है। प्रेम,स्वप्न, या फिरमेरा सतत संघर्ष? अब न तो नींद आती हैन ही जगने में मज़ाक्यों? ये भी नहीं पता! हफ़्तोंContinue reading “मेरा संघर्ष”
जीता कौन,हारा कौन?
कभी खाली होना तुमजब कुछ सालों बाद,तो इतनी मुरव्वत कर देनाबतला देना बस मुझको,जो खेला था सालों पहलेतुमने हमसे,उस खेल मेंथा जीता कौन और हारा कौन? -प्रशान्त
पाक़ रूह
पाक़ रूह से गुफ़्तगू का नतीजा ये हैआइना देखने की आदत छूट गयी वो कुछ यूँ गये हमारी ज़िन्दगी सेहँसती हुयी ज़िन्दगी हमसे रूठ गयी कल उन्हें देखने की बहुत कोशिश कीअब तो यादें भी दामन से छूट गयीं सुना प्यार है फ़साना रूहानी ख़ुशी कामेरी हँसी न जाने फिर कैसे सूख गयी न जज़्बाContinue reading “पाक़ रूह”
मिल भी जाये
मिल भी जाये कुछ यूँ ज़िन्दगी मुझ सेन वो न मैं कभी एक दुसरे से परेशान हों यूँ देखें मुझे वो छुपी नज़र सेमेरे बस वो ही एक कद्रदान हों देख कर उन्हें नहीं गिरते लफ़्ज़ लबों सेउनको पढ़ लें वो तो थोड़ी पहचान हो मोहब्बत नहीं बढ़ती सिर्फ मुलाकातों सेकाश उनके दिल में हमाराContinue reading “मिल भी जाये”
Letter Abroad
Here I write Dipping my words in saucy emotions,Cheesy or salsa,you may decide. It is a joy to see you at peace.Beauty often arises from churning of a beautiful mindHowever, I think sometimes,Is the Sun shiny in that distant land?Even if not, radiance of love would be enough. During the Fall,When those trees shed theirContinue reading “Letter Abroad”
फाल्गुनी दोपहर
फाल्गुन की एक दोपहर वो भी थीजब तुम मेरे पास थी,चमकता चेहराआँखों तक मुस्कान,तुमने पहनी थीहमारे प्यार की लाल चूड़ियाँऔर कुछ भी नहीं;आज तुम नहीं हो, औरचाहे जो भी हो मौसममेरा जीवन,अब जेठ की सुलगती दोपहरी है! -प्रशान्त
ढूँढ़ता रहा
वो नूर मेरी आँखों में ही थाजिसे मैं हर सू ढूंढ़ता रहा उल्फ़त मेरी कभी ख़त्म न हुयीये अलग बात दिल टूटता रहा जब तक मिला न ख़ुदा मुझेमैं हर एक बुत को पूजता रहा महकूम बनाती रहीं हमको तंज़ीमेंकौन सुनता है नारा जो गूँजता रहा ज़िन्दगी दौड़ती रही चमकती सड़कों परएक मैं माज़ी कीContinue reading “ढूँढ़ता रहा”