जीता कौन,हारा कौन?

कभी खाली होना तुमजब कुछ सालों बाद,तो इतनी मुरव्वत कर देनाबतला देना बस मुझको,जो खेला था सालों पहलेतुमने हमसे,उस खेल मेंथा जीता कौन और हारा कौन? -प्रशान्त

पाक़ रूह

पाक़ रूह से गुफ़्तगू का नतीजा ये हैआइना देखने की आदत छूट गयी वो कुछ यूँ गये हमारी ज़िन्दगी सेहँसती हुयी ज़िन्दगी हमसे रूठ गयी कल उन्हें देखने की बहुत कोशिश कीअब तो यादें भी दामन से छूट गयीं सुना प्यार है फ़साना रूहानी ख़ुशी कामेरी हँसी न जाने फिर कैसे सूख गयी न जज़्बाContinue reading “पाक़ रूह”

मिल भी जाये

मिल भी जाये कुछ यूँ ज़िन्दगी मुझ सेन वो न मैं कभी एक दुसरे से परेशान हों यूँ देखें मुझे वो छुपी नज़र सेमेरे बस वो ही एक कद्रदान हों देख कर उन्हें नहीं गिरते लफ़्ज़ लबों सेउनको पढ़ लें वो तो थोड़ी पहचान हो मोहब्बत नहीं बढ़ती सिर्फ मुलाकातों सेकाश उनके दिल में हमाराContinue reading “मिल भी जाये”

प्रभु चलती मेरी श्वास है

तेरी आस है तेरी प्यास हैमेरे राम तुझ पे विश्वास हैजब तक है तू मेरी याद मेंप्रभु चलती मेरी श्वास है। मेरे हृदय में हर अंग मेंजीवन की हर तरंग मेंतेरा नाम राम समाया हैमुझे क्यों नहीं अपनाया है। मेरा टूटता सा ये जनममेरे राम कर तू कुछ करमभव तार मुझको कृपानिधानतेरा दास दर पेContinue reading “प्रभु चलती मेरी श्वास है”

फाल्गुनी दोपहर

फाल्गुन की एक दोपहर वो भी थीजब तुम मेरे पास थी,चमकता चेहराआँखों तक मुस्कान,तुमने पहनी थीहमारे प्यार की लाल चूड़ियाँऔर कुछ भी नहीं;आज तुम नहीं हो, औरचाहे जो भी हो मौसममेरा जीवन,अब जेठ की सुलगती दोपहरी है! -प्रशान्त

ढूँढ़ता रहा

वो नूर मेरी आँखों में ही थाजिसे मैं हर सू ढूंढ़ता रहा उल्फ़त मेरी कभी ख़त्म न हुयीये अलग बात दिल टूटता रहा जब तक मिला न ख़ुदा मुझेमैं हर एक बुत को पूजता रहा महकूम बनाती रहीं हमको तंज़ीमेंकौन सुनता है नारा जो गूँजता रहा ज़िन्दगी दौड़ती रही चमकती सड़कों परएक मैं माज़ी कीContinue reading “ढूँढ़ता रहा”

हमें वो प्यार ही आता है

इतना जो तुम चाहोगीमैं कितना छुप पाऊँगाआना तो चाहता हूँन जाने कब आऊँगातुम दूर से इतना क्योंयूँ मुझको सताती होकहती हो सब आँखों सेलब से न बताती होबात इतनी सी है बस येतुम कुछ भी न जताती होप्यार का दिन हो क्यों कोईये मुझको समझाती हो बदला वो नज़ारा हैजो तुम से आता हैबिन कोईContinue reading “हमें वो प्यार ही आता है”

सपने वाला प्रेम

उमड़ आयी जो कल सपने मे मेरे  वो तुम ही थी,  या मेरा कोई अधूरा सपना  जो इस संसार में रास्ता न पाकर  नींद के चोर दरवाज़े से  पहुंची मुझ तक ऐसे  जैसे ठिठुरती सर्दी के बाद  आता है बसंत।  तुम सामने थी जब  उस भीड़ में भी शान्ति थी  सुना तो बहुत था  परContinue reading “सपने वाला प्रेम”

किसी और को

इश्तिहार-ए-इश्क़ में नाम मेरा ही थाये और है उसने खरीदा किसी और को मैं बस जिस्म था दिल नहीं उसके लियेबेपर्दा मुझे किया उसने पाने किसी और को इतना भी नहीं क्यों था हमें ख़ुद पर इख़्तियारख़ुद से अलग क्यों चाहा था  किसी और को अश्क़ बहे थे जो मोहब्बत की निशानी न थेवो पानी था जोContinue reading “किसी और को”