रोज़ एक कोयल आती थी छत परले कर कुछ तिनके कुछ दानेरोज़ जी उठता था बचपनजब गाती थी वो कोकिल गाने;जब से सूख गये सब नैनाअब उसका कोई अपना है नतब से वो नहीं आतीवो क्या अब हवा भी नहीं गाती;जब भाव का कोई प्रभाव नहींप्रेमहीन उसका स्वभाव नहींजितना भी बोलो दाने डालोपर अब वोContinue reading “रूठी कोयल”
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अकेलापन
एक खाली मेजतीन खाली कुर्सियाँएक अकेला अकेलापन-दो कुर्सियाँ ही खाली थींपिछली बार कहा था तुमने नहीं होगाकभी कोई अकेला,पर देखो न ऐसा क्यों हैपिछली बारजिसने उलझाये थे तुम्हारे बालआज उसने बस टिशू पेपर उड़ायेसच कहें? इन उड़ते काग़ज़ों मेंउड़ता रोमांस भी था। पिछली बार बड़ी मुश्किल सेछः पीले ग़ुलाबों के बीचएक लाल ग़ुलाब वालागुलदस्ता बनवायाContinue reading “अकेलापन”
छुटपन
छुटपन में सुंदर लगने वाली हर चीज़खो देती है पढ़-लिख करअपनी सुंदरता और अपने आप को। छत की सुलाईचोट की रुलाईनानी की बातटूटा हुआ दाँतबेफ़िक्री का हाथबिन बिजली की रातबचपन की रेलसाईकिल के खेल न हारने का डरन जीतने का अंतर;ये सब तो खो गया पढ़-लिख करना जाने क्या मिला बड़े हो कर! बचपन कीContinue reading “छुटपन”
दो अधूरे लोग
मैं सब कुछ लिख दूँगीतुम सब कुछ पढ़ लोगे,मैं सब कुछ कह दूँगीतुम सब कुछ सुन लोगे,दो अधूरे लोगों में फिरबचा क्या रह जायेगा? क्यों कहते नहीं तुम कुछलिखते क्यों नहीं अपना मन,आँखों के गहरे सागर सेकब उमड़ेंगे भाव सघन,मैं सब कुछ कह दूँगीतुम सब कुछ सुन लोगे,दो अधूरे लोगों में फिरबचा क्या रह जायेगा?Continue reading “दो अधूरे लोग”
रद्दी
बहुत दिनों बाद आज आँधी आयी थी- चेहरे पर, आँखों के कोरों में, बालों में, खिसखिसाते दाँतों में, धूल जम गयी है; पर सबसे बुरा ये हुआ सालों की सहेजी रद्दी उड़ गयी। कितनी पुरानी अनपढ़ी खबरें अनदेखे इश्तेहार तुम्हारे सॉल्व किये सुडोकु छज्जे पे बीती रविवारी दोपहरी टहलते हुये पढ़ी-सुनी हुयी कहानी तुम्हारी सिगरेटContinue reading “रद्दी”
बेरोज़गार इश्क़
शेखर (परिचय के लिये क्लिक करें) ने शहरी परिदृश्य में प्रेम को अपने सुंदर शब्दों के माध्यम से टटोला है। ऐसा प्रेम जिसमें चाँद-तारे तोड़ने के वादे नहीं पर घडी की टिक-टिक गिनने की सहजता है। ऐसा प्रेम जो तार्किक है और किया जा सकता है, सिर्फ सोचा नहीं जा सकता। इसी यथार्थपरकता के भाव केContinue reading “बेरोज़गार इश्क़”
You do not miss me
Ache in my heart resides all alone I listen to Pink Floyd to be comfortably numb My heart grows heavy but does not kill me Oh dear! How can I be so dumb? I might pen a thousand words She will not move towards me an inch She adores me like the unread book inContinue reading “You do not miss me”
अनजान शहर
उस अनजान शहर कीअनजान गली मेंबीच के एक घर मेंजो न मेरा था न उसकाबंद था सब,सिवाय उस खिड़की केजिस से छन करधीमी होती सूरज की किरणउसके चेहरे पर पड़ करफिर से ज़िंदा हो जाती थी ,उस मुलाकात की तरहजिसे होना बहुत पहले थापर हुयी आज थी। वो दे देती थी भ्रमजीवन काउस भावना कोजोContinue reading “अनजान शहर”
प्रशस्त-प्रेम
प्रिय मित्र ऋचा और अंकित की विवाह की चौथी वर्षगाँठ के अवसर पर एक छोटा सा प्रयास- कुछ यूँ सुंदर है प्यार तुम्हारा जैसेबोगनवेलिया के रंग-बिरंगे फूलकुछ यूँ पनपा है प्यार तुम्हारा जैसेछोटी छत पर गमले में फूल, है रंग-महक का ऐसा मेलादोनों के आते सब सुंदर हो जाता हैहै निश्छल ऐसी अभिव्यक्तिबिन कहे समझContinue reading “प्रशस्त-प्रेम”
जानते हो
शेखर (परिचय के लिये क्लिक करें) एक समकालीन संभावना हैं (छाते में घर की सुंदर सम्भावना)जो भावों को शब्दों की कूची से कागज़ों पर उकेरती हैं। कविता क्या है? इस पर कई निबंध लिखे जा चुके हैं पर कोई अंतिम निष्कर्ष ना निकल पाया है ना निकलेगा क्योंकि सतत परिवर्तनशील मानव भावनाओं को परिभाषाओं औरContinue reading “जानते हो”