ढूंढते थे पता मेरा कल जो कभी,लोग वो ही मुझे लापता कर गये । दे दी सज़ा हमने सह भी लिया,ना जाने क्या हम ख़ता कर गये। जिनकी महफ़िल की मैं कभी शान था,वो ही आशिक़ हमें बेवफा कर गये। रंग हथेली पर प्यार का जो चढ़ना ही था,मेंहदी मेरी मोहब्बत की क्यों फना कर गये। इससेContinue reading “लापता कर गये”
Category Archives: अभिव्यक्ति
तुम्हारी पीठ पर
प्रकृति के नैसर्गिक कोष सेतुमने,पायी है जो सोने सी काया,उस प्रेम-पृष्ठ पर स्याही सेकभी कोई “टैटू ” ना गुदवाना,बस,हो सके तो सहेज लेना तुम,उन हस्ताक्षर कोजो अपनी उंगली सेकभी किये थे मैंनेतुम्हारी पीठ पर। -प्रशान्त
कल, फिर क्यों तुम्हारी याद आयी?
सब कुछ रोज़ के जैसा थादेर से उठ कर देखा तोसूरज कुछ धीमा-धीमा था!कल, फिर क्यों तुम्हारी याद आयी? पढ़ रहा आज-कल मैं जिसेप्रथम-पृष्ठ उस पुस्तक का देखा तोपाया, तुम्हारी लिखाई में लिखा मेरा नाम!कल, फिर क्यों तुम्हारी याद आयी? अधपकी सी नवम्बर की सर्दीउस पर अधखुला मेरा कम्बलपल भर में जैसे तुमने मुझको समेट लिया!कल, फिरContinue reading “कल, फिर क्यों तुम्हारी याद आयी?”
टापर (TOPPER)
भारतीय सामाजिक एवं शैक्षणिक पृष्ठभूमि में एक भिन्न भांति की व्यवस्था है जो की साधारण मनुष्यों में से कुछ सौभाग्यशालियों को ऊँचा दर्जा प्रदान करती है। जैसे ही कोई साधारण मनुष्य अपने प्रयासों, कयासों, या पहुँच के कारण इस वर्गीकरण में स्थान पाता है, तब उसका अतुल्य महिमामंडन अकल्पनीय होता है। पूर्व का साधारण सा मनुष्यContinue reading “टापर (TOPPER)”
एक पीली छतरी
पीला उत्साह का रंग है। एक ऐसा रंग जो प्रकृति के प्रकाश-पुंज सूर्य का वृहद् प्रतिबिम्ब है। उसकी अगाध ऊर्जा का सर्वत्र विद्यमान चिन्ह है। कुछ ऐसी ही ऊर्जावान लगी उदय प्रकाश जी द्वारा लिखी गयी लम्बी कहानी “पीली छतरी वाली लड़की।” २१वीं सदी के समसामायिक साहित्य की सबसे सशक अभिव्यक्तियों में इस रचना को सदैव उच्च स्थान मिलेगा।Continue reading “एक पीली छतरी”
वो भी हैं अंग तुम्हारे
ओ प्रियतमा! मत नोचवाओ तुम अपने बाल, वो भी हैं अंग तुम्हारे प्रतीक तुम्हारे स्वातंत्र्य का। मैं प्रियतम भी फिर कैसा सच्चा प्रेमी हूँ? अगर आधार मेरे प्रेम का नहीं है तुम्हारे भाव पर वो चिकनी चमड़ी है, पाने जिसको तुम्हें जाना पड़ता है छोड़ अपना प्रेमालय उस बाज़ार, जहाँ प्रेम मात्र कार्ड में पढ़ने-बिकनेContinue reading “वो भी हैं अंग तुम्हारे”
मैं शांत हूँ आज
मैं शांत हूँ आज पर थका नहीं हूँ मेरा बिस्तर पर लेटना मेरी कमज़ोरी नहीं मेरी मजबूरी है, क्योंकि कोई और बहाना मिलता नहीं थके दिमाग को आराम देने का। आँखें आख़िरी बार बंद की हैं मैंने, आराम के साथ खुद को पहचान सकूँ जिससे, खोलूँगा जब इस बार वे बंद नहीं होंगी फिर कम से कमContinue reading “मैं शांत हूँ आज”
जब कभी भी जाना
जब कभी भी जाना तो मार देना मेरे प्रेम को भी, मैं नहीं चाहता अब तक था जो मेरे अन्दर सबसे सुन्दर रूप वो बने कभी भी कुरूप। कब तक करूंगा धारण मैं सभ्यता की भारी पोशाक, मैं नहीं चाहता वीभत्स हो कभी भी मेरी अभिव्यक्ति रचे हैं मैंने जिस से प्रेम-गीत अनूप। पर,Continue reading “जब कभी भी जाना”
मोहब्बत चीज़ पुरानी थी
मोहब्बत चीज़ पुरानी थीअब उसका ना कोई मोलनये दौर के इश्क़ काब्राण्ड कुछ अलहदा है,ठीक चवन्नी वाली टाफी की तरहजो ‘नये रैपर’ मेंअब दस रुपये में मिलती है,पहले मिलती थीजो दूर बस एक दुकान परआज गली-गली में बिकती हैपाना है जिसको आसानपर स्वाद करना मुश्किल हैअब पैसों के बिना कहाँसच्ची खुशियाँ मिलती हैं। -प्रशान्त Continue reading “मोहब्बत चीज़ पुरानी थी”
ग़रीबी
ग़रीबी शरीर ही नहीं दिमाग भी खा जाती है जैसे कोई बिना जीभ का आदमखोर राक्षस जो स्वाद नहीं लेता बस निगल जाता है यूं ही। निगले जाते हैं सपने भी हर रोज़ करोड़ों के सिर्फ़ इस कारण कि वो ग़रीब थे। -प्रशान्त