जानते हो

शेखर (परिचय के लिये क्लिक करें) एक समकालीन संभावना हैं (छाते में घर की सुंदर सम्भावना)जो भावों को शब्दों की कूची से कागज़ों पर उकेरती हैं। कविता क्या है? इस पर कई निबंध लिखे जा चुके हैं पर कोई अंतिम निष्कर्ष ना निकल पाया है ना निकलेगा क्योंकि सतत परिवर्तनशील मानव भावनाओं को परिभाषाओं औरContinue reading “जानते हो”

तिल

तुम सामने नहीं तो क्यानज़रें तुमसे हटती नहींऐ मेरे चाँद,तुम्हारे माथे पर कहीं तिल तो नहीं?इस नज़र से देखना है उसकोलगे तुम्हें कभी कोई नज़र नहींख़ैर मांगेंगे तुम्हारी क़ज़ा तकभले लगे तुम्हारी कोई ख़बर नहीं। बात पेशानी से बढ़ती है जबतब होठों तक जाती है,एक तिल चौकीदार सावहाँ भी बैठा हैबहुत चाहा तो क्या हुआहमनेContinue reading “तिल”

सुबह नये साल की

कशमकश भरी है सुबह इस नये साल कीज़िन्दा है सब यादें हर बीते हुये साल की इत्तेफ़ाक़न कोई सिक्का मिल जाये सड़क परहोती नहीं ताईद वो हयात-ए-मालामाल की शादाब हैं बस चार पत्तियाँ पौधे की तुम्हारीदे रहीं हैं गवाही मेरे हालात-ए-पामाल की कोई कुछ कर देता मुरव्वत तो जी लेते हमनहीं ख़्वाहिश हमें किसी नुमाइश-ए-मिसालContinue reading “सुबह नये साल की”

बढ़ई

आज घर पर बढ़ई  आया हैमरम्मत करने कुछ अलमारियों कीजिन पर रखी किताबों मेंसिर्फ़ हर्फ़ नहीं ,पुराने फूलों के निशानटॉफी के रैपरकुछ पुराने टिकटकुछ भूले हुये नाम औरकुछ यादें रखीं थीं। बढ़ई बुज़ुर्ग हैंइसलिये आप हैंउनके ऐनक पहनने मेंकुछ ऐसी कशिश हैजो तुम्हारे रे-बैन में नहीं,चेहरे पर है झुरमुट सफ़ेद बालों काजिस पर बाकी हैंजवानीContinue reading “बढ़ई”

वो अकेला उड़ गया है

वो परिंदा जो था मेरा आज देखो उड़ गया हैजितने अरमाँ थे हमारे साथ लेके उड़ गया है,बेकरारी है अगर उसका बोलो क्या करेंसाथ देता जो हमारा वो अकेला उड़ गया है। जान लिया जिसको हमने उस से कैसी आरज़ूबंद दिलों से होगी आख़िर उनसे कैसी गुफ़्तगू,मुश्किलें है मगर उसका बोलो क्या करेंमिल न जायेंContinue reading “वो अकेला उड़ गया है”

नया पैबंद

प्रस्तुत पंक्तियाँ मेरी मित्र जो कि उम्दा लेखिका होने के साथ एक उम्दा सोच की पैरोकार हैं उनके द्वारा लिखी गयी हैं. अभी तक उन्होंने अपना तख़ल्लुस नहीं ढूढ़ा है. तब तक उनका आग्रह है कि लैंगिक बाधाओं को तोड़ते हुए उन्हें “शेखर” कहा जाए।  उनके इसी आदेश के अनुपालन में प्रस्तुत हैं मर्मस्पर्शी कविता Continue reading “नया पैबंद”

माँ की बातें

माँ ने बचपन में जो ककहरा सिखाया थावो अभी तक याद हैवहाँ से लेकर अब तकऔर कितना कुछ भूल गया,तब शायद बिना बहस कियेबिना ज्ञान के घमण्ड केबात मानी थी उनकी मैंने। मैं आज भी देर-सवेर मान ही लेता हूँ आपकी बातबस तब तक मेरा दिलछिल चुका होता है,मेरे मतभेद आपसे नहीं माँविचारों के होतेContinue reading “माँ की बातें”

बदल जाओ तुम भी

सब बदलता है दुनिया में तुमको भी पता हैअब जीना हो अगर तो बदल जाओ तुम भी सब उसूलों की आजमाइश होगी तुम पर हीप्यार करना हो अगर तो बदल जाओ तुम भी झुकते पेड़ों पे पत्थर पड़े हैं और पड़ेंगे हीहरे रहना है अगर तो बदल जाओ तुम भी ज़िन्दगी क्या है सहूलियत काContinue reading “बदल जाओ तुम भी”

ज़रूरी नहीं है

मैं अब चुप हूँ बस तेरे लिये ऐ जाँयादें हैं काफी ज़ुबाँ ज़रूरी नहीं है न वो बोलते हैं न हम बोलते हैंसमझना न ये कि बात होती नहीं है मेरे इश्क़ को तुम लापता क्या करोगेये दुनिया है दिल की ज़मीन की नहीं है और मुश्किल करो अब इम्तेहां ज़िन्दगी केमेरा सब खो चुकाContinue reading “ज़रूरी नहीं है”

वो आज याद आ रहे हैं

न मिले जिनसे हम न छुआ है कभी भीरूठे दिलबर मेरे वो आज याद आ रहे हैं न गिला है उन्हें है न शिकवा हमें भीदस्तूर ज़माने के हमको रुला रहे हैं मंज़िल मिले न मोहब्बत को कभी भीताउम्र उनकी पेशानी हम पढ़े जा रहे हैं बैठ जाता है दिल उनके आँसू गिरते कभी भीहथेलियोंContinue reading “वो आज याद आ रहे हैं”