वो अंतरतम का दीपक स्थलकब ज्योतिमान होगा तुम से?कब हटेंगे तम के आवरणकब जीव मिल सकेगा तुम से? सरस जीव की नीरस धृति परप्रेम-सुधा विष जैसे आहत करताकराहता अंतर्मन आत्म-क्षुधा बर्बरकब जीव मिल सकेगा तुम से? हर स्पर्श मन का मलिन हुआभोग तप सा बन न सकाअगर सिमट कर छिप जाऊँकब जीव मिल सकेगा तुमसे?Continue reading “उत्कंठा”
Author Archives: smallcitythinker
I miss being you
The wind keeps blowingEnraging the embers within us, yet My mind turns numb when I feel The cold skin of your heart No grudge no emotions fudge, All that hurts me today is I miss being you. There is no point coming back To the routes where we walked There is no point coming backContinue reading “I miss being you”
मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ
मैं तुमसे मिलना चाहता हूँनहीं चुप चांदनी रात में,मैं तुमसे मिलना चाहता हूँबड़े शहर की बोलती रात में,मैं तुम्हें देखना चाहता हूँसड़क की दूधिया ट्यूबलाइट में; क्योंकिचाँदनी कवियों ने पुरानी कर दीक्यों छुपने दूँ मैं तुम्हारी सरल सुंदरताऔर खुद तुमकोकिसी कवि की कल्पना में? तुम में पता नहीं क्या दिखायी देता हैशायद सब कुछ- हँसी,Continue reading “मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ”
अकेलापन
एक खाली मेजतीन खाली कुर्सियाँएक अकेला अकेलापन-दो कुर्सियाँ ही खाली थींपिछली बार कहा था तुमने नहीं होगाकभी कोई अकेला,पर देखो न ऐसा क्यों हैपिछली बारजिसने उलझाये थे तुम्हारे बालआज उसने बस टिशू पेपर उड़ायेसच कहें? इन उड़ते काग़ज़ों मेंउड़ता रोमांस भी था। पिछली बार बड़ी मुश्किल सेछः पीले ग़ुलाबों के बीचएक लाल ग़ुलाब वालागुलदस्ता बनवायाContinue reading “अकेलापन”
छुटपन
छुटपन में सुंदर लगने वाली हर चीज़खो देती है पढ़-लिख करअपनी सुंदरता और अपने आप को। छत की सुलाईचोट की रुलाईनानी की बातटूटा हुआ दाँतबेफ़िक्री का हाथबिन बिजली की रातबचपन की रेलसाईकिल के खेल न हारने का डरन जीतने का अंतर;ये सब तो खो गया पढ़-लिख करना जाने क्या मिला बड़े हो कर! बचपन कीContinue reading “छुटपन”
ओवरब्रिज
बड़े शहर की सड़कों पररेलवे स्टेशन परहर भीड़ वाली जगह परओवरब्रिज होता है। नये-पुराने विचारधुंधली विचारधारायेंछोटे-बड़े लोगचल कर उसके कंधों पर इस पार से उस पार हो जाते हैं;काल की गतिशीलता का साक्षीओवरब्रिज एक स्थायित्व हैन वो किसी का हैन कोई उसका हैउस पर कोई नहीं रुकताचल कर उस परबस पार हो जाते हैं। शराबContinue reading “ओवरब्रिज”
दो अधूरे लोग
मैं सब कुछ लिख दूँगीतुम सब कुछ पढ़ लोगे,मैं सब कुछ कह दूँगीतुम सब कुछ सुन लोगे,दो अधूरे लोगों में फिरबचा क्या रह जायेगा? क्यों कहते नहीं तुम कुछलिखते क्यों नहीं अपना मन,आँखों के गहरे सागर सेकब उमड़ेंगे भाव सघन,मैं सब कुछ कह दूँगीतुम सब कुछ सुन लोगे,दो अधूरे लोगों में फिरबचा क्या रह जायेगा?Continue reading “दो अधूरे लोग”
रद्दी
बहुत दिनों बाद आज आँधी आयी थी- चेहरे पर, आँखों के कोरों में, बालों में, खिसखिसाते दाँतों में, धूल जम गयी है; पर सबसे बुरा ये हुआ सालों की सहेजी रद्दी उड़ गयी। कितनी पुरानी अनपढ़ी खबरें अनदेखे इश्तेहार तुम्हारे सॉल्व किये सुडोकु छज्जे पे बीती रविवारी दोपहरी टहलते हुये पढ़ी-सुनी हुयी कहानी तुम्हारी सिगरेटContinue reading “रद्दी”
बेरोज़गार इश्क़
शेखर (परिचय के लिये क्लिक करें) ने शहरी परिदृश्य में प्रेम को अपने सुंदर शब्दों के माध्यम से टटोला है। ऐसा प्रेम जिसमें चाँद-तारे तोड़ने के वादे नहीं पर घडी की टिक-टिक गिनने की सहजता है। ऐसा प्रेम जो तार्किक है और किया जा सकता है, सिर्फ सोचा नहीं जा सकता। इसी यथार्थपरकता के भाव केContinue reading “बेरोज़गार इश्क़”
जब तुम मिल जाती हो
तुम नसीम सी हो मन महक जाता है जब तुम मिल जाती हो। तुम दुआ सी हो बला टल जाती है जब तुम मिल जाती हो। तुम धागे सी होभावों की तुरपन हो जाती हैजब तुम मिल जाती हो। तुम चीनी सी होशाम मीठी हो जाती हैजब तुम मिल जाती हो। तुम सुरों सी होज़िंदगीContinue reading “जब तुम मिल जाती हो”