इस मुरव्वत की वजह ही नहीं

सिमट आये सब दर्द इस दिल में,इतनी इसमें जगह भी नहींज़फ़ा कर के आप छुप जाएँ,ऐसी कोई वजह भी नहींयकीन किया था हमनें खुद ही,आपका कभी कोई इशारा ना थाआंसूं बहायें आप मेरे लिए,इस मुरव्वत की वजह ही नहीं उम्र के तकाज़े पर वफ़ा का खेल,खेल लेते हैंप्रेमी नए दौर के कुछ दूर,संग दौड़ लेते हैंकब कीContinue reading “इस मुरव्वत की वजह ही नहीं”

अच्छा हूँ या बुरा पता ही नहीं, ना जाने क्या है गलत क्या है सही, ढूँढा बगल अपने कौन कौन है, दिमाग ना था और दिल भी नहीं, मुड़ के देखा रास्तों पर,आया समझ  कहा तो बहुत,किया कुछ भी नहीं  पर ये सच है कि करी कोशिशें बहुत  सब थे मेरे संग,बस मुकद्दर नहीं  बदल लोContinue reading

How was it so easy for you!

How was it so easy for youTo break my sincere heart,I’ll pay you,just make me learnYour brutally beautiful art,Vistas galore in life I too hadI chose to stick to you,Acted professionally you tad too wellI too could not gauge you,Using silliest pretexts ever conjuredTo tread the luxurious path,Forgot in a moment every feelIncluding pleasing ecstatic bath,Way toContinue reading “How was it so easy for you!”

Changing Dimensions of Friendship

Today, out of boredom when I switched on my television and started surfing the channels, I ultimately stopped watching the last 30 minutes of a famous musical drama “DOSTI.” When translated to English, the term means “FRIENDSHIP.” With the final scene, I was sufficiently evoked to express myself on this erstwhile most beautiful relationship, whichContinue reading “Changing Dimensions of Friendship”

हमारी बिटिया तो चली गयी

‘बिटिया’ शब्द का प्रयोग इसलिए किया है क्योंकि जो दिल्ली में आहत हुई है वो एक “बिटिया” थी ना की कोई ‘बेटी’ या ‘daughter’। एक साधारण बिटिया जो कि  अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी।जो कि एक सम्मानित जीवन जीना चाहती थी।उसे शायद नारीवाद से कोई मतलब ना था।वो बस अपने सपने पूरे करनाContinue reading “हमारी बिटिया तो चली गयी”

फिर भी माँ मुझसे बात करती है

मैं कितना बुरा हूँफिर भी माँ मुझसे बात करती है, जिनके कारण लड़ा था मैं तुमसेअपना असली रंग दिखा गएपर तुम आज भी रंगी हुई होममता के अमिट रंग में,आज भी जब सब दावतों मेंमज़े लेते हैं तुम्हे मेरीएक रोटी कम खानेकी बहुत चिंता है,रात में मेरे कमरे की बत्तीजब देर तक जलती हैऔर मैं किताब खोल करजबContinue reading “फिर भी माँ मुझसे बात करती है”

कौन हो तुम?कहाँ हो तुम?

कल रात ही तो सपने मेंकॉफ़ी पी थी तुमने मेरे साथपर मेरी इस ज़िन्दगी में,इस सुबह मेंकौन हो तुम?कहाँ हो तुम? मेरे उस पुराने से कप पररखे थे तुमने अपने गोरे हाँथतुम्हारी प्यारी पतली उंगलियाँजिनके निशाँ अभी तक है उस परकाँप रहीं थी रात की उस ठण्ड मेंसेंक रही थी जिन्हें तुम अपनी गर्म सांस परतुम्हारेContinue reading “कौन हो तुम?कहाँ हो तुम?”

और मैं नहीं हूँ

वो दीवार तुम्हारे घर कीआज भी उसी रंग की हैवो सब जो जैसा थाआज भी वैसा ही हैकोई फर्क न पड़ा हैज़िन्दगी में सिवा इसकेतुम बदले हुए होऔर मैं नहीं हूँ ख़ता भी मेरी ही थीफर्क पहचान ना सकादौलत के असर को मैंअच्छे से जान ना सकाकुछ ज्यादा ही फक्रकर बैठा अपनी सच्चाई परसतही ख़ुशीContinue reading “और मैं नहीं हूँ”

मेरे ख़त्म होने से अगर तुम्हारी शुरुआत होती है,तो मुझे मौत से भी गिले-शिकवात नहीं है ,कई लफ्ज़ जो अनकहे रह गये,सहेज कर रखूँगा मैं,सुनते हैं जन्नत में कोई टोंक-टांक नहीं है ख़त्म होकर भी अगर वफ़ा मुझे मिल जाये,मेरे जाने के अरसों बाद तू जन्नत में मुझे मिल जाये,जो इकरार यहाँ कर ना पाया,वहां करContinue reading