जाना ही सत्य है;जन्म से लेकर प्रेम तकलोग आते हैंमात्र जाने के लिये। फूल सूख जाता है खिल करपानी बह जाता है मिल करऔर समय के साथलिखा हुआ सब मिट जाता है। तो सत्य क्या है?क्या देखा है किसी ने?वेदों की ऋचाओं मेंया वासनाओं की पोटली मेंसत्य, कहाँ है? क्या जो नहीं दिखता वो नहींContinue reading “सत्य”
Author Archives: smallcitythinker
स्वप्न-हन्ता
जो लौट गया घर अपनेलेकर टूटे सपनों की गाँठक्या लौटेगा उसका यौवनहफ़्ते में दिन जिसके आठ। वो सूखे होंठ पथराई आँखेंबोले चुप चुप में ही हर बातकब तक सुबह की राह देखेंजब इतनी लंबी हो रात। उपक्रम जीवन हो जाता हैलंबा जब हो जाता संघर्षआशा फिर भी बंधी है रहतीकभी तो होगा उत्कर्ष! अपराधी हैContinue reading “स्वप्न-हन्ता”
Why Mia left Seb?
La La Land was not any different from the mundane land and times we live in! The cliched theme of love lilted with melodious music and weaved with lyrical dialogues bestowed a novelty to the movie. However, one question haunted me throughout. Why is it that from Allahabad to Venice it is generally the male loverContinue reading “Why Mia left Seb?”
ऐ नदी
पहाड़ियाँ सुन्दर होती हैं जल्दी नहीं बदलतीं, पर कुछ अलग होती हैं नदियाँ, वो एक जगह नहीं रुकतीं। बह चलो तुम भी समेटते वो सब जो मिले रास्ते में तुम्हें मुड़ना भी होगा कभी बदलना होगा रास्ता भी पर जब तुम मिलोगी सागर से तुम्हारे अस्तित्व का असली नमक उसे और खारा कर देगा। नमकContinue reading “ऐ नदी”
पुराना इंसान
जब कभी उकता जाना खुद से तो पढ़ी हुयी किताब बंद कर देना जब कभी ऊब जाना सब से जिनसे मिल चुके उनसे न मिलना जब कभी थक जाना चलने से चले हुए रास्तों पर फिर न चलना बात ये है कि, तुम्हारी किताबें तुम्हारे लोग तुम्हारे रास्ते अब बेमायने हो गए हैं। और जबContinue reading “पुराना इंसान”
कौवे के प्रश्न
सूखी डाल पर बैठा कौवादेख रहा खिड़की के पार,एक मेज पर सोती कलमेंजिनमें छुपे भाव अपार। कौवे ने ऊंची तान में पूछाबना सकते क्या मेरा आकार?सुंदर सा दिखता हूँ क्या मैं?मिल सकता क्या मुझको प्यार? कोई कलम न जब बोली उस सेबदला जब न उनका व्यवहार,खिड़की की देहरी पर पहुंचाकि अब हो जाये आर याContinue reading “कौवे के प्रश्न”
हाथ की रेखायें
कहीं कुछ तो लिखा होगा उनके भी लियेजिन्होंने की हैं कोशिशेंऔर मिला जिन्हें कुछ भी नहीं;अगर नहीं लिखा कुछतो लिख लें कुछ वो भीअपनी उँगलियों से,हर हाथ की रेखायेंमेहनत से नहीं बनती। – प्रशान्त
नया तांडव
अब आम और आदमी पहले जैसे नहीं पकतेक्योंकि नहीं पड़ती गर्मीजैसे पड़ा करती थी बचपन मेंअब या तो कच्ची रहती हैं बौरया फिर “आत्मा” ही जल जाती है। आज फिर असह्य उमस हैमन से टपकती ग्लानिशरीर से बहता पसीनादोनों ही नहीं सूखतेन जाने किस पीड़ा से गुजर करलेखक ने “चरित्रहीन” लिखी होगी। कल लन्दन मेंContinue reading “नया तांडव”
काश!
काश! सुलझ जाती कुछ उलझनें;उंगलियों में घूमता हुआ वो धागातुमने उलझाने के लिये तो न लपेटा होगा,गोरी उंगलियों पर लिपटीकाले धागे की कई परतेंअंगूठी है उस रिश्ते कीजिसे न किसी ने बनायान ही किसी ने पहनाया। काश! समझ आ जाती कुछ पुरानी बातें;तुमने उस दिन जो कुछ कहा थाफ़ोन की खरखराहट ने सुनने न दियाContinue reading “काश!”
कस्टर्ड
पागल से लगने वाले विक्की ने अपने हिस्से का कस्टर्ड सामने खेल रही छोटी बच्ची को दे दिया। ****************************************************************************************** विक्की भावी अफसरों के बीच रहने वाला एक युवा कर्मचारी है। अपने काम से ज़्यादा वो अपने मुँहफट और पागल अंदाज़ के लिए प्रसिद्ध है। बीच-बीच में अधकचरी अंग्रेजी में बोले गये उसके कुछ वाक्य सभी काContinue reading “कस्टर्ड”