जो बैठे हैं शिखरों पर
नहीं सबके पाँव में छाले हैं,
ऊपर चमक रही है काया
पर अन्दर दिल बड़े काले हैं।
हर सफल नहीं है समग्र पूज्य
सब नहीं सच्चे साधन वाले हैं,
“मैं” पर टिका साम्राज्य है जिनका
चने सब घने बजने वाले हैं।
अपना ईष्ट बना लो तुम
कहाँ वो मानव ऊँचे वाले हैं,
शिष्यों की जो थामे उँगली
कहाँ गुरु तपस्या वाले हैं।
बड़ा बड़ाई खुद करे
तो क्या बड़ा कहलाये,
धन से बड़ा जो है बने
बड़प्पन कहाँ से लाये।
ना ढूँढ़ो शरण बड़े की
अपने पथ के राही तुम हो,
धूल, सूर्य, बादल, कीचड़
इन सब से बड़े तुम हो।
कल भटको तो आ जाना
अपने मन के देवालय में,
कर पूजन अपने ईष्ट का
समर्पित प्रकृति न्यायालय में।
चमकेगा जब सूर्य ज्ञान का
सब झूठे भस्म हो जायेंगे,
लहरायेगी पताका सत्य की
जो “बड़े” हैं बचे रह जाएंगे!
-अशान्त