अख़बार में “”जल-सत्याग्रह ” करतेवृद्ध कृषकों और ग्राम निवासियों के पैर देखे।वो ऐसे तो न थे जिन्हें देख कर उन्हें ज़मीन पर रखने से मना कर दूं।लेकिन मन ग्लानि ,व्यथा और निस्सहयता से भर गया कि क्या यही जनतंत्र है?अगर मतों की समानता देखी जाए तो ,मेरे और उन वृद्धों के चुनावी मत में कोई अंतर नहीं हैContinue reading “जल पैरों में फोड़े और बिवाई भी देता है”
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रंग
इत्तेफाक़न वो रंग कुछ इस तरह आँखों में बसा और सभी रंग बेरंग हो गए कुछ इस तरह रंगा मैंने तुम्हे रंगरेज़ बन कर मेरे सामने ही तुम्हारे हाथ पीले हो गए इतनी मसरूफियत थी ज़िन्दगी में की तेरे रंग को ही जहान बना डाला आज शीशे हैं मेरी आँखों के सफ़ेद मुझे छोड़ मेरे यार तुमContinue reading “रंग”
सख्त दरवाज़े
सख्त दरवाज़े थे मेरे भी घर के पर वक़्त के साथ खुल गए वो जो कालिख़ लगी है कुण्डी पे और जो दरारे हैं पल्लों पे असर है उस आग का जो सालों पहले मैंने लगाईं थी जो निशान था मेरे हाथ पे सर्जरी से उसे दिल पर लगवा लिया था तब से घर के सारेContinue reading “सख्त दरवाज़े”
अनलिखा ख़त
कल आधी रात पढ़ा वो ख़तजो तुमने कभी लिखा ही नहींआंसुओं की स्याही भलाक्या कोई रंग लाती है! फिर भीआज सुबह से मन भारी हैलगता हैज़माने भर की धुंध मेरे कमरे में जमा हैतुम नाराज़ थींतो बता दिया होता यूं हीइतने कड़े ख़त कीआखिर क्या ज़रूरत थी! रोज़मर्रा की तरहजाते हुए मंजिल कोअपने जूते हीContinue reading “अनलिखा ख़त”
तकनीकी विकास का बच्चों पर दुष्परिणाम
विकास एक ऐसी दोधारी तलवार है,जिसका अगर विवेकपूर्ण उपयोग ना किया जाए तो वह हमारी उन्नति एवं आत्मरक्षा का साधन होने के बजाय विनाश का कारक भी बन सकता है. विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो मनुष्य के जीवन की सार्थकता को सिद्ध करती करती है. मानव जाति को विश्वास दिलाती है कि वो इसContinue reading “तकनीकी विकास का बच्चों पर दुष्परिणाम”
उलझन
इमारतें, कुर्सियां जिंदा हो जातीं हैं जब उन पर इंसान बैठते हैं दिमाग सन्नाटे से भीड़ में आता है जब कहीं विचार उबलते हैं इश्क वही सच्चा है जो आग को बुझने ना दे कर मायूस न कभी और मंज़िल से पहले रुकने ना दे कमरों में कब तक चलेगी लफ्फाज़ी घूमते रहेंगे कब तकContinue reading “उलझन”
हे प्रेम
Valentine’s Day (प्रेम दिवस) पर “प्रेम” को मेरी श्रद्धांजलि!!! हे प्रेम!! कहाँ तुम छुप गए क्यों दुबके हो तुम दिखावे के छोटे वस्त्रो में क्या इतनी आती है तुम्हे शर्म मत शरमाओ कुछ यूं फैलो कि समा लो स्वयं में उन “दो” चकवा चकवी को जिनकी आत्माएं शरीर के बंधन तोड़ एक हो चुकी हैंContinue reading “हे प्रेम”
हम वहां हो
आप मुस्कुराएँ और हम वहां हों सारे आलम हो हुस्न के और हम वहां हों नहीं तमन्ना हमें ताज महल की छोटा सा घर हो आपका और हम वहां हों पतझड़ में गिरी पत्ती फंसी हो बालो में उसको हटाने के लिए बस हम वहां हों किताबों से थक जब आँखें आराम करें उन पर से चश्मा हटाने को हमContinue reading “हम वहां हो”
a NEW perspective
Novelty infuses enthusiasm in a nondescript life. An urge to do something new accompanies occurrence of a new phenomenon. Recently, we witnessed the advent of a new year and a new decade. The past decade started with a lot of buzz – the Y2K syndrome, a new century, a new millennium, a harbinger of the giant leap ofContinue reading “a NEW perspective”
मिट्टी की तलाश में
मन में जो आया बस उसे लिख रहा हूँ… पता नहीं ये कविता है कि नहीं!! ना ये पता है कि ये साहित्य किसी भी वर्ग में स्थान पाने के लायक भी है या नहीं.. परन्तु इसका पूर्ण विश्वास और संतोष है कि ये रचना एक सच्ची हार्दिक अनुभूति का प्रतिफल है!! रात को चमकती लाइटContinue reading “मिट्टी की तलाश में”