मैं जब भी गिरता ख़ुद ही उठ जाता थामाँ ने माँगी थीं बेपनाह दुआयें मेरे लिये एक दौर बड़ी कशमकश थी ज़िन्दगी मेंजब आये सुकून साथ लाये तुम मेरे लिये मालूम हुयी वालिदैन की दी छत की क़ीमतजब निकला शहर में ढूँढ़ने मैं घर मेरे लिये बड़ी नफ़ासत है आज उनकी अदाओं मेंज़ुम्बिश है उनकेContinue reading “दुआ”