सपने वाला प्रेम

उमड़ आयी जो कल सपने मे मेरे  वो तुम ही थी,  या मेरा कोई अधूरा सपना  जो इस संसार में रास्ता न पाकर  नींद के चोर दरवाज़े से  पहुंची मुझ तक ऐसे  जैसे ठिठुरती सर्दी के बाद  आता है बसंत।  तुम सामने थी जब  उस भीड़ में भी शान्ति थी  सुना तो बहुत था  परContinue reading “सपने वाला प्रेम”

किसी और को

इश्तिहार-ए-इश्क़ में नाम मेरा ही थाये और है उसने खरीदा किसी और को मैं बस जिस्म था दिल नहीं उसके लियेबेपर्दा मुझे किया उसने पाने किसी और को इतना भी नहीं क्यों था हमें ख़ुद पर इख़्तियारख़ुद से अलग क्यों चाहा था  किसी और को अश्क़ बहे थे जो मोहब्बत की निशानी न थेवो पानी था जोContinue reading “किसी और को”

अर्थ बदल जाते हैं

अर्थ बदल जाते हैंबदलती हैं भावनायें भीजो पावन था कभीहो जाता है पतित;तुम्हारे एक झूठ औरबनावटी चरित्र ने,एक ज़िंदा पेड़ मेँसुलगता चूना दाल दिया। -प्रशान्त

दो औरतें

क्या बुरी है वो औरत तुमसे?क्यों उसे सब वेश्या कहते हैं?वीभत्स तो तुम भी उतनी होजितनी कि वो है,पर अंतर है कुछवो वेश्या अपनी मर्ज़ी से नहींतुम चरित्रहीन अपनी मर्ज़ी से हो। तुम उतारती हो कपड़े बंद कमरों मेंकरने को सिद्ध अपने स्वार्थवो दिखाती है बदन बाज़ारों मेंजीने के लिये,तुम्हारा काम बुरा नहीं क्योंकितुम्हारे पासContinue reading “दो औरतें”

मुझे अम्बेडकर देख रहे हैं

मुझे अम्बेडकर देख रहे हैं आजअपनी उन्हीं आँखों सेपढ़-पढ़ कर जिनसे लिखा था उन्होंने संविधानक्यों मुस्कुराते हैं वो मुझ पर?मेरी असफलता, मेरी कमीया प्रेम पर मेरा आश्रय देख कर? मैंने उन्हें धोखा दिया है लेकिन,ना पढ़ कर संविधान। जब तक सोयेगा कोई भूखाइस देश-जहान मेंतब तक,प्रेम पाप है! -प्रशान्त

ख़ुदा सुनेगा भी तो कैसे

बस छत तक जाने का इरादा हो जिसकाआसमान में सुराख़ वो करेगा कैसे? बुझ जाता है दिल फ़िकरों से जिसकाज़िन्दगी का सिकंदर वो बनेगा कैसे? झोपड़ी में ही महल बस जायेगा जिसकाहक़ की लड़ाई आख़िर वो लड़ेगा कैसे? मतलब के लिये बदलता रंग हो जिसकाउसकी दुआ ख़ुदा सुनेगा भी तो कैसे? -प्रशान्त 

शान्त शाम

बहुत सालों बादआज की तारीख़ वाली शामबिल्कुल शान्त हैठीक वैसे ही जैसे शान्त थी तुम उस दिनसंचारित था जब प्रेमदो जोड़े होठों मेंजो आशा-प्रत्याशा मेंशर्माते थरथराते थे पर वह शान्ति मलिन न थीउद्वेग था उसमें पर ग्लानि नहींवो स्वतंत्रता नहींआज महँगे कपड़ो में भीजो नग्न होते हुये भी रहती थी तुम्हारे सामनेजब बिना कुछ सोचेContinue reading “शान्त शाम”

मिलन

सुना है बरसों पहलेबनारस से कोई नांव निकली संगम की तरफ पार कर के कितनी ज़मीनकितने महासागरकितने सूखेकितनी बरसातेंकितने मौसमआखिर उसे मिल ही गयावो मांझी प्रेम कामिलाने को उस धारा सेरुकी हुयी है जो बरसों से इसी आस मेंकि तुम आ जाओतो आगे हम और तुम साथ चलें-प्रशान्त

कुछ लिखा हुआ

उसने कहा  कुछ लिख के भेजो ज़रा, मेरे शब्दों में जैसे हलचल मच गयी लड़ते लुढ़कते मुझ तक पहुंचे हैं कुछ सजते ही पेश कर दूंगा मैं भी, जैसे उस साडी वाले ने उस दिन खुद पर पल्ला डाल कर दिखाया था तुम्हें वो ज़री और कढ़ाई आज भी सजी है तुम्हारी अलमारी में, मेरी सादीContinue reading “कुछ लिखा हुआ”

मेरी ज़िन्दगी

मेरी ज़िन्दगी का हालउस ज़मीन जैसा हैजो है तो बहुत बड़ी,जिस पर है नज़र हर किसी की,पर नहीं है उसकामालिक कोईइसलिये,अब वहाँ फूल नहींबस, झाड़-झंखाड़उगते हैं। -प्रशान्त