Here I write Dipping my words in saucy emotions,Cheesy or salsa,you may decide. It is a joy to see you at peace.Beauty often arises from churning of a beautiful mindHowever, I think sometimes,Is the Sun shiny in that distant land?Even if not, radiance of love would be enough. During the Fall,When those trees shed theirContinue reading “Letter Abroad”
Author Archives: smallcitythinker
फाल्गुनी दोपहर
फाल्गुन की एक दोपहर वो भी थीजब तुम मेरे पास थी,चमकता चेहराआँखों तक मुस्कान,तुमने पहनी थीहमारे प्यार की लाल चूड़ियाँऔर कुछ भी नहीं;आज तुम नहीं हो, औरचाहे जो भी हो मौसममेरा जीवन,अब जेठ की सुलगती दोपहरी है! -प्रशान्त
ढूँढ़ता रहा
वो नूर मेरी आँखों में ही थाजिसे मैं हर सू ढूंढ़ता रहा उल्फ़त मेरी कभी ख़त्म न हुयीये अलग बात दिल टूटता रहा जब तक मिला न ख़ुदा मुझेमैं हर एक बुत को पूजता रहा महकूम बनाती रहीं हमको तंज़ीमेंकौन सुनता है नारा जो गूँजता रहा ज़िन्दगी दौड़ती रही चमकती सड़कों परएक मैं माज़ी कीContinue reading “ढूँढ़ता रहा”
हमें वो प्यार ही आता है
इतना जो तुम चाहोगीमैं कितना छुप पाऊँगाआना तो चाहता हूँन जाने कब आऊँगातुम दूर से इतना क्योंयूँ मुझको सताती होकहती हो सब आँखों सेलब से न बताती होबात इतनी सी है बस येतुम कुछ भी न जताती होप्यार का दिन हो क्यों कोईये मुझको समझाती हो बदला वो नज़ारा हैजो तुम से आता हैबिन कोईContinue reading “हमें वो प्यार ही आता है”
सपने वाला प्रेम
उमड़ आयी जो कल सपने मे मेरे वो तुम ही थी, या मेरा कोई अधूरा सपना जो इस संसार में रास्ता न पाकर नींद के चोर दरवाज़े से पहुंची मुझ तक ऐसे जैसे ठिठुरती सर्दी के बाद आता है बसंत। तुम सामने थी जब उस भीड़ में भी शान्ति थी सुना तो बहुत था परContinue reading “सपने वाला प्रेम”
किसी और को
इश्तिहार-ए-इश्क़ में नाम मेरा ही थाये और है उसने खरीदा किसी और को मैं बस जिस्म था दिल नहीं उसके लियेबेपर्दा मुझे किया उसने पाने किसी और को इतना भी नहीं क्यों था हमें ख़ुद पर इख़्तियारख़ुद से अलग क्यों चाहा था किसी और को अश्क़ बहे थे जो मोहब्बत की निशानी न थेवो पानी था जोContinue reading “किसी और को”
अर्थ बदल जाते हैं
अर्थ बदल जाते हैंबदलती हैं भावनायें भीजो पावन था कभीहो जाता है पतित;तुम्हारे एक झूठ औरबनावटी चरित्र ने,एक ज़िंदा पेड़ मेँसुलगता चूना दाल दिया। -प्रशान्त
हो इश्क़ भला तो ऐसा हो
जो तड़प के आख़िर टूट ही जायेहो इश्क़ भला क्यों ऐसा होजो अपनी आग ही सह न पायेहो इश्क़ भला क्यों ऐसा होसाथ कदम जो चल न पायेहो इश्क़ भला क्यों ऐसा हो भवरों में भी जो डूब न पायेहो इश्क़ भला तो ऐसा होतासीर कभी न बुझने पायेहो इश्क़ भला तो ऐसा होजीने मरनेContinue reading “हो इश्क़ भला तो ऐसा हो”
दो औरतें
क्या बुरी है वो औरत तुमसे?क्यों उसे सब वेश्या कहते हैं?वीभत्स तो तुम भी उतनी होजितनी कि वो है,पर अंतर है कुछवो वेश्या अपनी मर्ज़ी से नहींतुम चरित्रहीन अपनी मर्ज़ी से हो। तुम उतारती हो कपड़े बंद कमरों मेंकरने को सिद्ध अपने स्वार्थवो दिखाती है बदन बाज़ारों मेंजीने के लिये,तुम्हारा काम बुरा नहीं क्योंकितुम्हारे पासContinue reading “दो औरतें”
मुझे अम्बेडकर देख रहे हैं
मुझे अम्बेडकर देख रहे हैं आजअपनी उन्हीं आँखों सेपढ़-पढ़ कर जिनसे लिखा था उन्होंने संविधानक्यों मुस्कुराते हैं वो मुझ पर?मेरी असफलता, मेरी कमीया प्रेम पर मेरा आश्रय देख कर? मैंने उन्हें धोखा दिया है लेकिन,ना पढ़ कर संविधान। जब तक सोयेगा कोई भूखाइस देश-जहान मेंतब तक,प्रेम पाप है! -प्रशान्त