निष्ठुर

सर्दियाँ निष्ठुर होती हैं-गरीबों के लियेबच्चों के लिये बूढ़ों के लियेजानवरों के लियेजो दूसरों पर निर्भर हैंउनके लिए। आ जाती है निर्भरता कुछ प्रेम में भी,हर बात बतानातस्वीर दिखानाजिस पर कोई भी ना हँसेउस बात पर हँस जानाजो दुनिया देती हैउस से इतर नाम से बुलानादेर से सोनाफिर जल्दी जग जाना;एक दूसरे कीआदत सी बन जाती हैफिरContinue reading “निष्ठुर”

जानते हो

शेखर (परिचय के लिये क्लिक करें) एक समकालीन संभावना हैं (छाते में घर की सुंदर सम्भावना)जो भावों को शब्दों की कूची से कागज़ों पर उकेरती हैं। कविता क्या है? इस पर कई निबंध लिखे जा चुके हैं पर कोई अंतिम निष्कर्ष ना निकल पाया है ना निकलेगा क्योंकि सतत परिवर्तनशील मानव भावनाओं को परिभाषाओं औरContinue reading “जानते हो”

In Search of Liberation- Haridwar and Rishikesh

Burdened by the self-imposed expectations and entrapped in the vicious cycle of desires, I have recently started seeking liberation (Moksha is one of the purusharthas too). The thought that experiential knowledge is more important than factual collection has penetrated my mind. I feel that instead of reading numerous scriptures if a person can internalise evenContinue reading “In Search of Liberation- Haridwar and Rishikesh”

तिल

तुम सामने नहीं तो क्यानज़रें तुमसे हटती नहींऐ मेरे चाँद,तुम्हारे माथे पर कहीं तिल तो नहीं?इस नज़र से देखना है उसकोलगे तुम्हें कभी कोई नज़र नहींख़ैर मांगेंगे तुम्हारी क़ज़ा तकभले लगे तुम्हारी कोई ख़बर नहीं। बात पेशानी से बढ़ती है जबतब होठों तक जाती है,एक तिल चौकीदार सावहाँ भी बैठा हैबहुत चाहा तो क्या हुआहमनेContinue reading “तिल”

सुबह नये साल की

कशमकश भरी है सुबह इस नये साल कीज़िन्दा है सब यादें हर बीते हुये साल की इत्तेफ़ाक़न कोई सिक्का मिल जाये सड़क परहोती नहीं ताईद वो हयात-ए-मालामाल की शादाब हैं बस चार पत्तियाँ पौधे की तुम्हारीदे रहीं हैं गवाही मेरे हालात-ए-पामाल की कोई कुछ कर देता मुरव्वत तो जी लेते हमनहीं ख़्वाहिश हमें किसी नुमाइश-ए-मिसालContinue reading “सुबह नये साल की”

Stealing affections

The last few hours of the yearYou are nowhere around,I could never feel your breathI could never smell you tooI could never hold your handI could never kiss your eyesThere is lot that I can doBut there is nothing left to doOh dear! You might feel good about youYou only stole holy affections. Too muchContinue reading “Stealing affections”

बढ़ई

आज घर पर बढ़ई  आया हैमरम्मत करने कुछ अलमारियों कीजिन पर रखी किताबों मेंसिर्फ़ हर्फ़ नहीं ,पुराने फूलों के निशानटॉफी के रैपरकुछ पुराने टिकटकुछ भूले हुये नाम औरकुछ यादें रखीं थीं। बढ़ई बुज़ुर्ग हैंइसलिये आप हैंउनके ऐनक पहनने मेंकुछ ऐसी कशिश हैजो तुम्हारे रे-बैन में नहीं,चेहरे पर है झुरमुट सफ़ेद बालों काजिस पर बाकी हैंजवानीContinue reading “बढ़ई”

वो अकेला उड़ गया है

वो परिंदा जो था मेरा आज देखो उड़ गया हैजितने अरमाँ थे हमारे साथ लेके उड़ गया है,बेकरारी है अगर उसका बोलो क्या करेंसाथ देता जो हमारा वो अकेला उड़ गया है। जान लिया जिसको हमने उस से कैसी आरज़ूबंद दिलों से होगी आख़िर उनसे कैसी गुफ़्तगू,मुश्किलें है मगर उसका बोलो क्या करेंमिल न जायेंContinue reading “वो अकेला उड़ गया है”

नया पैबंद

प्रस्तुत पंक्तियाँ मेरी मित्र जो कि उम्दा लेखिका होने के साथ एक उम्दा सोच की पैरोकार हैं उनके द्वारा लिखी गयी हैं. अभी तक उन्होंने अपना तख़ल्लुस नहीं ढूढ़ा है. तब तक उनका आग्रह है कि लैंगिक बाधाओं को तोड़ते हुए उन्हें “शेखर” कहा जाए।  उनके इसी आदेश के अनुपालन में प्रस्तुत हैं मर्मस्पर्शी कविता Continue reading “नया पैबंद”