क्यों तुम मुझसे रूठे राम
बाधायें जीवन में अविराम,
किस विधि स्तुति करूँ तुम्हारी
जीवन मेरा भी बने अभिराम।
शबरी को अपनाया तुमने
बाली को भी तारा है,
मारुति के संग रण में
तुमने रावण को भी मारा है।
कलियुग में भी आओ ना
कुछ सम्बल हमें धराओ ना,
इस छोटे से जीवन में
प्रेम रस बरसाओ ना।
प्रश्न उठे जब भी तुम पर
हमने सब उत्तर ढूँढ़े हैं,
शब्द कभी जो कम पड़ जाते
नित नये तुलसी ढूँढ़े हैं।
भक्त तुम्हारा क्षत-विक्षत
पुकारे तुमको सुबह शाम,
करूणा-सिंधु अब तो उमड़ो
गले लगाओ मुझे श्री राम।
– अशान्त