मुझे इस जीवन तक ले आयी
प्रेम को परिभाषित करने की आकांक्षा
मोक्ष से भी बड़ी हो गयी
प्रेम को परिभाषित करने की आकांक्षा;
निरर्थक हो गये सदियों के प्रयत्न
तुमसे मिलते ही,
ज्ञात हुआ तुम्हें सुनते ही
प्रेम नाद-ब्रह्म है-
उसे अनुभूत किया जा सकता है
परिभाषित नहीं।
मैने सोचा- तुम कौन हो?
कहीं से कोई स्वर गूँजा-
मैं कालातीत और अलौकिक प्रेम की
सरल, सहज, सुंदर सांसारिक अभिव्यक्ति हूँ!
तब से ही-
तुम देवी
मैं तुम्हारा पुजारी हूँ।
– अशान्त