धनक-पुल

क्षितिज के दो छोरों पर
दो प्रेमी खड़े हैं
एक शायद तुम हो
एक शायद मैं हूँ,
इन दो छोरों के बीच
धनक ने बनाया है पुल-
हम दोनों को पता है
न तुम आओगी इस पार
न मैं आऊँगा उस पार।

एक एक रंग उड़ जायेगा धनक का
जैसे उड़ जाता है समय के साथ प्रेम
पर रहेगा रंग-
कुछ तुम्हारा मुझ पर
कुछ मेरा तुम पर;
कुछ रह जायेगा उस धनक-पुल पर
जोड़ता है हमको दूर रख कर।

– अशान्त

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