तुम्हारे दिये पौधे में
बस तीन डंठलें बची हैं,
सब दिखता है
शीशे के गमले के आर-पार
इसलिये उस में नहीं जमा होने दी
कभी कोई गन्दगी;
दावा तो नहीं है पर झूठ भी नहीं
दिल ने तुम्हें बिना किसी संशय
हमेशा निश्छल ही चाहा है,
बड़ी मेहनत से बदला है रोज़ पानी
तब जाकर तीन डंठलें ज़िंदा हैं,
क्या तुमने भी मुझे रखा है
किसी भी तरह ज़िंदा, या फिर
पोपली पीले-काली डंठलों
पीली पत्तियों की तरह
फेंक दिया मुझे भी
किसी अनजान शहर के कूड़ेदान में!
तुम्हारे प्यार के भी तीन शब्द बचे हैं-
नैना, प्रेम, जीवन
मैंने ढक लिया है खुद को
इन सूत्रों से बने त्रिपुण्ड से
जो तुम्हारे सिवा किसी और को
ना दिखाई देंगे
ना समझ आयेंगे;
पर जहाँ से निकलूंगा मैं
चन्दन महक जायेगा
मेरे जलने से निकलने वाला धूआँ
दम नहीं घोटेगा, जीवन देगा।
अच्छा एक काम करोगी?
एक बार आकर छू दो इन तीन डंठलों को
शायद ये तीन हमेशा हरी रह जायें
कुछ तसल्ली रह जाये इस दिल को भी
वो चकोर का चाँद नहीं तो क्या
सर्दी की बुझती हुयी भट्टी की आग तो है
सेंक कर जिसमें अपनी यादें
बुढ़ापे के दिन कुछ आसानी से कट जायेंगे।
समाज रोक सकता है तुमको,
काश! पहले ही रोक लेता
तो ये बेवजह सी घुटन
ये बैठे-बैठे दिल का डूबना
ये बनावटी मुस्कान,
कुछ भी नहीं होता!
मैं तुम्हें ख़त लिखना चाहता हूँ
हर शब्द जो बोला है कभी भी
इस तीन डंठलों वाले पौधे से
तुम तक पहुँचाना चाहता हूँ,
मैं छुपना चाहता हूँ
तुम्हारे पर्स की उस छोटी जेब में
जिसमें रखती हो तुम
अपने पसंदीदा रंग की लिपस्टिक,
हाँ! नारंगी बहुत जँचता है
तुम्हारे होठों पर
मेरी आँखों की चमक वाला ग्लॉस (gloss )
चमकता रहता है तुम्हारे होठों पर
जिसे लोग कॉस्मेटिक समझते हैं
वो असल में मेरा प्यार है।
बीच रात जब अधूरी नींद टूटती है
तो आती है तुम्हारी याद
ऐसा लगता है किसी ने फेंक दिया पहाड़ से
और नीचे ज़मीन ही नहीं है,
मैं गिरता ही जा रहा हूँ
अभी भी गिर ही रहा हूँ
सच बताऊँ, बहुत डर लगता है
राहत नहीं मिलती कोई
पैर सिकोड़ने से
न आँसुओं के बहने से
शायद दिल अब कभी हल्का नहीं होगा।
इन सब के बीच है अगर जीने की आस
तो ये तीन डंठलों वाला पौधा
इसी के सहारे अब कट सकता है जीवन,
तुमने सही किया
अपना जीता-जागता सहारा ढूंढ लिया;
हो सके तो बता देना
कैसे ज़िंदा रहेगा तुम्हारा दिया हुआ
ये तीन डंठलों वाला पौधा
और उस से जुड़ा एक आदमी?
कमज़ोर हो रही हैं उसकी भी जड़ें
कब तक टिकेंगी पानी में
ज़िन्दगी टिकने के लिये मांगती है ज़मीन
वो तुम कब का अपने साथ ले कर चली गयी
हो सके तो उस पर लगा देना
दो डंठलों वाला एक पौधा;
दो डंठल- तुम और मैं!
– प्रशान्त
