मुख़ालफ़त हमसे करते इश्क़ तो मासूम था
सज़ा ज़ुबाँ को देते दिल तो बेचारा मासूम था
सज़ा ज़ुबाँ को देते दिल तो बेचारा मासूम था
तुम्हारे तग़ाफ़ुल से मर गया जो जीते जी
कह दो तुम ही वो शख़्स नहीं मासूम था
भूल के सब दुनियादारी जिसने किया इज़हार
लबों को बंद रखने वाला वो शख़्स मासूम था
तुम बड़े बन गये सब से कह कर बड़ी बात
जो कुछ समझ नहीं पाया आशिक मासूम था
बे-सवाल आ झुका था तुम्हारी सीरत पर जो
बेअसरआवाज़ वाला तुम्हारा दोस्त मासूम था
ना आता है पास और ना ही रहता है दूर
कहते हैं सब मेरा महबूब बड़ा मासूम था
तुम तो कब का बिक चुके थे “प्रशान्त”
तुम ही बताओ क्या ख़रीदार मासूम था?
– प्रशान्त