तिल

तुम सामने नहीं तो क्या
नज़रें तुमसे हटती नहीं
ऐ मेरे चाँद,
तुम्हारे माथे पर कहीं तिल तो नहीं?
इस नज़र से देखना है उसको
लगे तुम्हें कभी कोई नज़र नहीं
ख़ैर मांगेंगे तुम्हारी क़ज़ा तक
भले लगे तुम्हारी कोई ख़बर नहीं।

बात पेशानी से बढ़ती है जब
तब होठों तक जाती है,
एक तिल चौकीदार सा
वहाँ भी बैठा है
बहुत चाहा तो क्या हुआ
हमने तो देखा बस
हमारी उँगलियाँ
उस तक कभी बढ़ी नहीं।

तिल बना देता है
खूबसूरत को और भी खूबसूरत,
और कभी कभी बन जाता है
अंग्रेज़ी का फुलस्टॉप
जिस पर ख़त्म हो जाता है वाक्य
काश!तुमने कोई कॉमा लगाया होता
तो शायद कुछ लिखा जा सकता आगे,
हमने तो याद कर लिया है पूरा तुमको
किताब ग़ुम भी हो जाये
तो कोई बात नहीं!

– प्रशान्त

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