मेरी ज़िन्दगी

मेरी ज़िन्दगी का हाल
उस ज़मीन जैसा है
जो है तो बहुत बड़ी,
जिस पर है नज़र
हर किसी की,
पर नहीं है उसका
मालिक कोई
इसलिये,
अब वहाँ फूल नहीं
बस, झाड़-झंखाड़
उगते हैं।

-प्रशान्त

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