तुम्हारी पीठ पर

प्रकृति के नैसर्गिक कोष से
तुमने,
पायी है जो सोने सी काया,
उस प्रेम-पृष्ठ पर स्याही से
कभी कोई “टैटू ” ना गुदवाना,
बस,
हो सके तो सहेज लेना तुम,
उन हस्ताक्षर को
जो अपनी उंगली से
कभी किये थे मैंने
तुम्हारी पीठ पर।

-प्रशान्त 

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