एक तिनका हूँ मैं उस बूढ़े पेड़ का
झूमता खड़ा है जो उस मोड़ पर
सुलभित,प्रसन्न था मैं भी कभी
ढोते हुए उसकी पत्तियाँ
पर आज बात कुछ और है
गिर गया हूँ मैं,सूखी सारी पत्तियां
इस धुप में जला, झुलसा
हो कांतिहीन
लू के थपेड़ों के साथ
पहुंचा मैं एक आँगन में
कि कुछ शीत मिल जाए
आशावान था मैं
पर था शायद भूल गया
टूटे हुए को सहारा मिलता है
ना कि कोई सुविधा
झूमता खड़ा है जो उस मोड़ पर
सुलभित,प्रसन्न था मैं भी कभी
ढोते हुए उसकी पत्तियाँ
पर आज बात कुछ और है
गिर गया हूँ मैं,सूखी सारी पत्तियां
इस धुप में जला, झुलसा
हो कांतिहीन
लू के थपेड़ों के साथ
पहुंचा मैं एक आँगन में
कि कुछ शीत मिल जाए
आशावान था मैं
पर था शायद भूल गया
टूटे हुए को सहारा मिलता है
ना कि कोई सुविधा
काश! जंगली होता मैं
गिरकर फिर से उग जाता
होता ना मुझमें जीवन-सौंदर्य
भले ही रहता मैं अस्तित्वहीन
पर इस संसार में
जीवित तो कहलाता मैं
-अशांत