हमारी बिटिया तो चली गयी

‘बिटिया’ शब्द का प्रयोग इसलिए किया है क्योंकि जो दिल्ली में आहत हुई है वो एक “बिटिया” थी ना की कोई ‘बेटी’ या ‘daughter’। एक साधारण बिटिया जो कि  अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी।जो कि एक सम्मानित जीवन जीना चाहती थी।उसे शायद नारीवाद से कोई मतलब ना था।वो बस अपने सपने पूरे करना चाहता थी।उसके सपने तो पूरे ना हुए पर जाते जाते उसने हजारो सवाल  अपने पीछे छोड़े  हैं। आज़ादी के मायने क्या हैं हमारे देश में? क्या पित्रिसत्तात्मकता  का जवाब मात्रिसत्तात्मकता है ? क्या विकास एवं उत्थान बड़ी गाड़ियों में चलने से ही परिलक्षित होता है? क्या आगे की पंक्ति में वही खड़े हो सकते हैं जो कि शराब या सिगरेट पीते हैं या डिस्को जाते हैं?क्या छोटे शहर में अपने मूल्यों पर चलने वाली ,सलवार -सट  पहनने वाली लड़कियों को निस्वार्थ प्रेम करने का और उसे अपने तरीके से अभिव्यक्त करने का अधिकार नहीं है?क्या उसे ये आज़ादी नहीं है कि वो अपनी आधुनिकता को अपने कर्म द्वारा प्रदर्शित करे ?अगर इन सवालों के जवाब हमारे पास नहीं है तो हमें कोई हक़ नहीं है किसी भी पीड़ित के लिए शोक मनाने का,क्योंकि ऐसा करके हम सिर्फ ढोंग कर रहे हैं….  
क्यों बैठे हो जंतर-मंतर पर 
रौशनी क्यों अब जलाते हो 
नहीं चाहिए फांसी हमको 
क्यों झूठी आशा जगाते हो 
अब क्या करेंगे हम ये सब लेकर 
हमारी बिटिया तो चली गयी 
भेजा था पढने उसको 
कि अपने पैर खड़ी हो जाये
क्या सोचा था सच्ची सोच की 
कीमत इतनी बड़ी होगी  
इतना दर्द सहा जीने को,फिर भी 
हमारी बिटिया तो चली गयी 
दोष किसे दे समझ नहीं 
खुद को,तुमको या सबको 
किस से पूछे प्रश्न यही 
भगवान् को या संविधान को 
मानो कॊइ जवाब आ भी गया,पर 
हमारी बिटिया तो चली गयी 
जा सकती थी वो कैसे भी 
क्या उसको ऐसे ही जाना था 
उस दिन फोन किया था उसने 
जाड़े में घर पर आयेगी 
पर अब सब रस्ते खाली हैं 
हमारी बिटिया तो चली गयी 
कैसी सोच है ये हम सब की 
नाम तक छुपा जाते है 
ऐसे समाज में रहते हैं 
फिर इज्ज़तदार कहलाते हैं 
मेरी बिटिया बेनाम मरी,क्या कहे,क्या करें 
हमारी बिटिया तो चली गयी 
जाने कैसे लोग थे वो 
उसे लोथड़ा मांस का समझा था 
जाने कितनी नफरत थी 
पूरा शरीर तो नोच था 
गिद्ध नहीं तो इंसान सही,पर 
हमारी बिटिया तो चली गयी  
कल क्या होगा,क्या बदलेगा 
अखबार पढ़ोगे,दो शब्द बोलोगे तुम
लेकर चुस्की चाय की तुम 
ज्ञान सरिता रस घोलोगे 
पर बोलो उस से क्या बदलेगा 
हमारी बिटिया तो चली गयी 
कैसे हम घर वापिस जायेंगे 
क्या देंगे जवाब उस गुडिया को 
जो तुम्हारे कमरे में 
आज भी वैसी रखी है 
वो गुडिया रोज़ सवाल पूछती रहेगी,पर 
हमारी बिटिया तो चली गयी 
बिटिया,नहीं करते हैं हम वादा कोई 
नहीं भरोसा निभा सकेंगे उसको 
अगर उस पार है नयी दुनिया कोई 
जहां तुम चली गई हो 
नए नियम बना वहाँ खुश रहना तुम,क्योंकि 
हमारी बिटिया तो चली गयी 
ना करना कोई दुआ कबूल 
जाना तुम इस दुनिया को भूल 
हम कभी ना तंग करने वहाँ आयेंगे 
झूठा मातम यहीं मनाएंगे 
रखना नाम नया,पहचान नयी,क्योंकि 
हमारी बिटिया तो चली गयी 
-अशांत  

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