वो दीवार तुम्हारे घर की
आज भी उसी रंग की है
वो सब जो जैसा था
आज भी वैसा ही है
कोई फर्क न पड़ा है
ज़िन्दगी में सिवा इसके
तुम बदले हुए हो
और मैं नहीं हूँ
आज भी उसी रंग की है
वो सब जो जैसा था
आज भी वैसा ही है
कोई फर्क न पड़ा है
ज़िन्दगी में सिवा इसके
तुम बदले हुए हो
और मैं नहीं हूँ
ख़ता भी मेरी ही थी
फर्क पहचान ना सका
दौलत के असर को मैं
अच्छे से जान ना सका
कुछ ज्यादा ही फक्र
कर बैठा अपनी सच्चाई पर
सतही ख़ुशी भी होती है ज़रूरी
चिंता में कभी जान ना सका
ख़ता मेरी ही थी
जो बना रखे थे उसूल
जिनको निभाने में
समझा कायर सबने
ज़माना है दिखावे का
जो दिखता है वही बिकता है
अपने जज्बातों का बाज़ार
मैं ही लगा न सका
इतिहास जीतने वाला ही लिखता है
इसलिए मैं क्या कहूं
कोई फर्क न पड़ा है
ज़िन्दगी में सिवा इसके
तुम बदले हुए हो
और मैं नहीं हूँ
-अशांत