होगी मुझको चुभन भी

तन्हाई हसरत न थी कभी दिल की
घूम फिर के दिल तन्हा फिर भी है
ना मोहब्बत की कसक है
ना रंजिश का असर है
है रौशनी हर तरफ फैली
मेरे मन पर ही ना कोई असर है
खुद की बनाई दीवारों ने 
बनाया है मुझे खुद का दुश्मन
ये कैसा आलम है ज़िन्दगी का
ना ख़ुशी है
ना घुटन है
ना हँसी हैं
ना चुभन है
मुझे सूली पर नहीं चढ़ाया 
ज़माने से फिर कैसा बैर
खुद ही मिला ना किसी से मै
शिकायत करूं भी तो कैसे करूं
धूल आँख में चुभती नहीं
सांस भी खुद से रूकती नहीं
कितना कुछ है मन में
लफ्ज़ की डोर बंधती नहीं
ये कैसा आलम है ज़िन्दगी का
ना ख़ुशी है 
ना घुटन है
ना हँसी है
ना चुभन है
बस चल रहा है सब पहले सा
एक ढर्रे पर लिखी कहानी की तरह
पर बदलेगा ये मौसम भी
ज़िन्दगी का ये आलम भी
लहराएगा उस आंधी में
जो कहीं छुप कर हो रही तैयार
देने को ताकत 
मेरी हर कोशिश को
जो कभी लाल ना हो पाई
फिर मिलेगी ख़ुशी
होगी थोड़ी घुटन भी
हंसेगा मन खुल के मेरा
होगी मुझको चुभन भी
अशांत

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