मुझको पता है
तुमने मुझे मुस्कुराते हुए देखा है
ये बात और है कि
भीड़ के परदे में छुपकर
तुमने खुद को छुपा लिया
पर रोक न पाई अपनी आँखों की चमक
जो पार कर झिझक की दीवार
मेरे मन का एक कोना
रोशन कर गई
दुपट्टा आज भी संभाला था तुमने
लेकिन खुद को संभालने के लिए
ना कि अपनी रोजाना की आदत की तरह
उभरते हुए भावों को
फिर तुमने बाँध लिया
ऐसा मैं नहीं
तुम्हारी तेज़ सांसें कहती हैं
मै सब कुछ जानकर भी
दूर ही बैठा रहा
इस भय से कि मेरा सामीप्य
तुम्हारे मृदुल भावों को
कहीं दूषित ना कर दे
स्वीकार है मुझे आजीवन ये वियोग
जब तक वह सघन गुलाबी रेखा
तुम्हारे मुख पर शोभित है
ये बात और है कि
भीड़ के परदे में छुप कर
तुमने खुद को छुपा लिया
मुझको पता है
तुमने मुझे मुस्कुराते हुए देखा है
अशांत
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