आशिक कई बने है तेरे!!

आशिक कई बने हैं तेरे
तेरी मासूमियत के वार से
नज़रें इनायत कीजिये तो ज़रा
हम भी खड़े है इस कतार में।

अपनी नजाकत का है न इल्म तुझे
हर अदा दिल पर असर करती है
शबाब पर होती हैं आहें जब
हया से तेरी आँखें झुकती हैं।

वाडे करने की रस्म है
तो चलो हम पूरी कर देंगे
यकीन नही है यूँ तो इन पर
तेरे लिए ज़मीर झूठा कर देंगे।

यूँ तो बहुत कद्र हुई होगी
लाखों तारीफें भी मिली होंगी
पर जिन नज़रों से देखा है हमने
वो खूबसूरती न किसी और देखी होगी।

अनजान हम हैं तेरे असर से
कोई दावा न मिली दर्द की
एक रहम की फरियाद है
कुछ कद्र करिए इस गुलाम की।

नज़रें इनायत कीजिये तो ज़रा
हम भी खड़े है इस कतार में।

अशांत



One thought on “आशिक कई बने है तेरे!!

  1. the thought again is so touching that it is difficult for me to type new words of appreciation without getting into the risk of repeating myself again and again…….it is sincere that is all i can say it is true and direct from your soul this as well as all the remaining poems…

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