खुले पैर

टूटा हुआ दिल कवितायें रच सकता है पर टूटा हुआ मन नहीं। पता नहीं दुबारा कब कविता लिखने का मन होगा जो कि प्रतिक्रियात्मक नहीं अपितु नैसर्गिक भावों कि अभिव्यक्ति होगी। तब तक शेखर लिखती रहेंगी और उनकी लेखनी आप सबसे साझा होती रहेंगी। आसमान की ये स्याह चादर  मेरे लिये कुछ छोटी सी पड़Continue reading “खुले पैर”

बेरोज़गार इश्क़

शेखर (परिचय के लिये क्लिक करें) ने  शहरी परिदृश्य में प्रेम को अपने सुंदर शब्दों के माध्यम से टटोला है।  ऐसा प्रेम जिसमें चाँद-तारे तोड़ने के वादे नहीं पर घडी की टिक-टिक गिनने की सहजता है।  ऐसा प्रेम जो तार्किक है और किया जा सकता है, सिर्फ सोचा नहीं जा सकता।  इसी यथार्थपरकता के भाव केContinue reading “बेरोज़गार इश्क़”